क्या मध्य प्रदेश में जहरीले कफ सिरप से 10 बच्चों की मौत के लिए तमिलनाडु की कंपनी और डॉक्टर जिम्मेदार हैं?

सारांश
Key Takeaways
- जहरीले कफ सिरप का सेवन बच्चों के लिए घातक हो सकता है।
- प्रिस्क्राइबिंग डॉक्टर को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
- सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है।
- बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए।
- जांच के बाद उचित कार्रवाई होनी चाहिए।
भोपाल, 5 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के परासिया में जहरीले कफ सिरप के सेवन से 10 निर्दोष बच्चों की मौत के मामले में पुलिस ने कठोर कदम उठाया है। परासिया थाना की पुलिस ने कांचीपुरम (तमिलनाडु) की श्रीसन फार्मास्युटिकल नामक कफ सिरप निर्माण करने वाली कंपनी और सिरप लिखने वाले डॉ. प्रवीन सोनी के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
डॉ. प्रवीन सोनी पर आरोप है कि वे सरकारी डॉक्टर होते हुए भी निजी क्लीनिक का संचालन कर रहे थे।
पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए डॉ. प्रवीन सोनी को छिंदवाड़ा के राजपाल चौक से गिरफ्तार कर लिया। जानकारी के अनुसार, डॉ. सोनी सरकारी अस्पताल में कार्यरत हैं, लेकिन नियमों का उल्लंघन करते हुए उन्होंने निजी क्लीनिक में बच्चों को वही सिरप प्रिस्क्राइब किया, जिसके कारण बच्चों की जान चली गई।
प्रारंभिक जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि कफ सिरप में जहरीले केमिकल मौजूद थे। इस मिलावट के कारण बच्चों को गंभीर रिएक्शन्स हुए और इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। डॉ. प्रवीन सोनी पर आरोप है कि उन्होंने बिना उचित जांच के इस सिरप को कई बच्चों को प्रिस्क्राइब किया।
घटनाक्रम के बाद कफ सिरप की जांच में डायएथिलीन ग्लाइकोल की मात्रा नियामकीय सीमा से बहुत अधिक पाई गई। सामान्यतः कफ सिरप में डायएथिलीन ग्लाइकोल की मात्रा 0.10 प्रतिशत तक होनी चाहिए, लेकिन जांच में यह मात्रा 48 प्रतिशत पाई गई, जो कि मानक से लगभग 480 गुना अधिक है।
डायएथिलीन ग्लाइकोल एक विषैला पदार्थ है, जिसकी अत्यधिक मात्रा शरीर को गंभीर नुकसान पहुँचाती है। इसलिए सरकार ने कोल्ड्रिफ कफ सिरप पर प्रतिबंध लगा दिया है।
एक और कफ सिरप 'नेक्सट्रो डीएस' की भी जांच जारी है। इसकी जांच रिपोर्ट आने के बाद इस पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। जांच पूरी होने तक इस सिरप को प्रिस्क्राइब करने पर भी रोक लगा दी गई है।