क्या मध्य प्रदेश में महापौर, अध्यक्ष और पार्षद के चुनाव लड़ने वालों के मामलों की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हो रही है?
सारांश
Key Takeaways
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई का नया तरीका लागू किया गया है।
- 226 अभ्यर्थियों को निरर्हित किया गया है।
- अब अभ्यर्थियों को भोपाल आने की जरूरत नहीं।
- सुनवाई हर गुरुवार को होती है।
- नोडल अधिकारी की नियुक्ति से त्वरित समाधान संभव।
भोपाल, 19 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। बदलते समय में तकनीकी नवाचारों का उपयोग करके समय और धन की बचत के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं। मध्य प्रदेश के राज्य निर्वाचन आयोग ने महापौर, अध्यक्ष और पार्षद के चुनाव लड़ने वालों के व्यय संबंधी मामलों की सुनवाई अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से करने का निर्णय लिया है।
इस प्रक्रिया के दौरान, 226 अभ्यर्थियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के बाद निरर्हित (डिवार) किया गया। पहले, महापौर, अध्यक्ष और पार्षद के चुनाव लड़ने वालों को अपने व्यय मामलों की सुनवाई के लिए भोपाल आना पड़ता था, लेकिन अब यह नियम बदल चुका है।
राज्य निर्वाचन आयुक्त मनोज श्रीवास्तव ने इन अभ्यर्थियों के चुनावी व्यय लेखा दाखिल करने के संबंध में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई का यह नया तरीका अपनाया है। अब अभ्यर्थियों को सुनवाई के लिए राज्य निर्वाचन आयोग भोपाल आने की आवश्यकता नहीं है।
सुनवाई हर गुरुवार को होती है, जिससे अभ्यर्थियों का समय और धन दोनों की बचत हो रही है। पहले, ऐसे मामलों की सुनवाई राज्य निर्वाचन आयोग के मुख्यालय भोपाल में होती थी। श्रीवास्तव द्वारा फरवरी 2025 से अब तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 411 अभ्यर्थियों की सुनवाई की जा चुकी है।
भोपाल, खण्डवा, छिंदवाड़ा, मन्दसौर, धार, सतना, उमरिया, ग्वालियर, अलीराजपुर, राजगढ, नीमच, शाजापुर, डिण्डौरी, सागर और हरदा जिलों के अभ्यर्थियों की सुनवाई की जा चुकी है। राज्य निर्वाचन आयुक्त ने 97 अभ्यर्थियों के चुनावी व्यय लेखे को सुनवाई के बाद मान्यता दी है।
राज्य निर्वाचन आयुक्त ने 226 अभ्यर्थियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के बाद निरर्हित (डिवार) किया है। निरर्हित किए जाने की अवधि अधिकतम पांच साल तक हो सकती है। प्रकरणों के त्वरित समाधान के लिए आयोग ने जिले के उप जिला निर्वाचन अधिकारी (स्थानीय निर्वाचन) को नोडल अधिकारी नियुक्त किया है।
मध्य प्रदेश नगरपालिक निगम और मध्य प्रदेश नगर पालिक अधिनियम के अंतर्गत चुनावी व्यय लेखा प्रस्तुत करना आवश्यक है, और यदि कोई अभ्यर्थी लेखा दाखिल करने में असफल रहता है, तो उसे निरर्हित घोषित किया जा सकता है।
नैतिक न्याय के आधार पर, लेखा दाखिल करने में असफल अभ्यर्थियों को विलंब से लेखा दाखिल करने का अवसर दिया जाता है, और जो अभ्यर्थी निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं करते, उन्हें राज्य निर्वाचन आयुक्त के समक्ष अपना पक्ष रखने का मौका मिलता है。