क्या मखदुमपुर सीट पूर्व मंत्रियों का गढ़ है और राजद की पकड़ कितनी मजबूत है?
सारांश
Key Takeaways
- मखदुमपुर का चुनावी इतिहास कई पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
- यहां की सामाजिक संरचना चुनावी परिणामों को प्रभावित करती है।
- राजद ने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है।
- मखदुमपुर की गुफाएं ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
- यह सीट बिहार की राजनीति में हमेशा एक महत्वपूर्ण केंद्र रही है।
पटना, 29 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के मगध क्षेत्र में स्थित जहानाबाद जिले की मखदुमपुर सीट का नाम सुनते ही कई लोग इसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र समझते हैं, लेकिन वास्तव में यह कस्बा कई विरोधाभासों से भरा हुआ है। जब हम मखदुमपुर की बात करते हैं, तो 2020 के विधानसभा चुनाव के परिणाम की याद आती है, जिसने राजद को इस अनुसूचित जाति (एससी) सीट पर पुनः जीत का अवसर प्रदान किया।
दर्धा नदी से मात्र चार किलोमीटर दूर स्थित इस प्रखंड स्तरीय कस्बे ने 2020 के चुनाव में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। राजद के उम्मीदवार सतीश दास ने हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के देवेंद्र कुमार को बड़े अंतर से हराया था। इस मुकाबले में बहुजन समाज पार्टी तीसरे स्थान पर रही, जो दर्शाता है कि सुरक्षित सीट होने के बावजूद यहां मुकाबला त्रिकोणीय रहा।
हालांकि, मखदुमपुर का इतिहास एक चुनाव तक सीमित नहीं है। यह सीट हमेशा से बिहार की राजनीति का नर्सरी रही है, जहां कई बड़े दिग्गजों ने अपनी किस्मत आजमाई है। मखदुमपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एक बार पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी किया था। उन्होंने 2010 के विधानसभा चुनाव में इस सीट का नेतृत्व किया था। इससे पहले 2005 के चुनाव में राजद उम्मीदवार कृष्णनंदन वर्मा ने यहां जीत दर्ज की थी।
नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री रह चुके कृष्णनंदन वर्मा उस समय राजद के टिकट पर चुनाव लड़े थे। लालू यादव की सरकार में मंत्री रहे बागी वर्मा भी दो बार यहां से विधायक चुने गए थे। इससे यह समझा जा सकता है कि मखदुमपुर की राजनीतिक दिशा का पता लगाना हमेशा से कठिन रहा है।
अगर हम चुनावी इतिहास की पृष्ठभूमि पर नजर डालें, तो मखदुमपुर ने विभिन्न समय पर कई पार्टियों को सत्ता का अनुभव कराया है। यहां कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 6 बार जीत दर्ज की, लेकिन यह पुराना दौर था। इसके बाद जनता दल के टूटने से निकली पार्टियों का वर्चस्व बना रहा। राजद ने 3 बार, लोजपा ने एक बार और जदयू ने भी एक बार चुनाव जीते। 1995 के बाद से राजद की पकड़ मजबूत रही है, जिसने पिछले चार में से तीन चुनाव जीते हैं।
हालांकि, मखदुमपुर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है, लेकिन यहां के सामाजिक समीकरण चुनावी नतीजों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एससी मतदाता बड़ी भागीदारी रखते हैं, लेकिन जीत का रास्ता इन्हीं के साथ-साथ कोरी, यादव और भूमिहार जातियों के मतदाताओं से गुजरता है। इन समुदायों के मतदाता चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं, और यही कारण है कि हर पार्टी अपने उम्मीदवार का चयन करते समय इन जातीय समीकरणों का ध्यान रखती है।
मखदुमपुर का सबसे बड़ा आकर्षण इसका ऐतिहासिक अतीत है, जो बराबर की पहाड़ियों में स्थित प्राचीन बराबर गुफाओं के रूप में जीवित है। यह स्थान शहर से लगभग 11 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है और इसे भारत की सबसे पुरानी चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाओं के रूप में जाना जाता है।
ये गुफाएं मौर्य साम्राज्य के समय की हैं और प्राचीन बौद्ध वास्तुकला और आजीवक संप्रदाय के उद्भव से जुड़ी हुई हैं। इन सात गुफाओं के समूह में 'लोमस ऋषि गुफा', जिसे 'सतघरवा गुफा' भी कहते हैं, सबसे प्रसिद्ध है।
मखदुमपुर एक ऐसी धरती है जहां बराबर की पहाड़ियों से इतिहास झांकता है और चुनावी मैदान में बड़े-बड़े धुरंधर उतरते हैं। यह शिक्षा, संस्कृति और सत्ता की खींचतान का एक केंद्र है, जो बिहार की राजनीति को हमेशा दिलचस्प बनाए रखता है।