क्या योगी आदित्यनाथ का नाम लेने पर गवाह को छोड़ा जाएगा? मालेगांव ब्लास्ट मामले में बड़ा खुलासा

सारांश
Key Takeaways
- गवाह मिलिंद जोशीराव ने एटीएस पर दबाव डालने का आरोप लगाया।
- मालेगांव बम धमाके में योगी आदित्यनाथ का नाम लिया गया।
- कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी किया।
- एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में अंतर पाया गया।
- गवाहों पर मानसिक दबाव डालना न्यायिक प्रक्रिया के लिए खतरा है।
मुंबई, 2 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। मालेगांव बम धमाके के गवाह मिलिंद जोशीराव ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है कि एटीएस के अधिकारियों ने उन पर दबाव डाला कि योगी आदित्यनाथ का नाम भी लें, जिससे उन्हें गिरफ्तार किया जा सके। जोशीराव ने बताया कि एटीएस मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कुछ नेताओं के नाम लेने के लिए उन पर जोर दे रहा था, जिसमें योगी आदित्यनाथ का नाम भी शामिल था।
गवाह मिलिंद जोशीराव के अनुसार, उन पर योगी आदित्यनाथ, इंद्रेश कुमार, साध्वी, काका जी, असीमानंद और प्रोफेसर देवधर का नाम लेने का दबाव बनाया गया था। उन्हें यह कहा गया कि यदि वे इन सभी का नाम लेते हैं, तो उन्हें निश्चित रूप से छोड़ दिया जाएगा।
जोशीराव ने यह भी बताया कि एटीएस के अधिकारी लगातार उन पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं का नाम लेने के लिए मानसिक दबाव डालते रहे। वह सात दिनों तक एटीएस की हिरासत में रहे, जहां उन्हें विभिन्न तरीकों से प्रताड़ित किया गया ताकि वे अपने बयान को उनके अनुसार बदलें।
इसके अलावा, 'रायगढ़ मीटिंग' के संबंध में जोशीराव ने कहा कि उन्हें ऐसी किसी मीटिंग की जानकारी नहीं है जहां हिंदुत्ववादी राष्ट्र बनाने की शपथ ली गई हो। जोशीराव ने यह भी आरोप लगाया कि डीसीपी श्रीराव और एसीपी परमबीर सिंह ने उन्हें धमकी दी और डराया, ताकि वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं का नाम लें। उन्होंने कहा कि एटीएस के बयान में कोई सच्चाई नहीं है और यह उनके द्वारा लिखी गई है।
यह भी ज्ञात हो कि मालेगांव बम धमाके मामले में 17 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने 31 जुलाई को सबूतों के अभाव में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में काफी अंतर है। अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि बम मोटरसाइकिल में था। प्रसाद पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला कि उन्होंने बम बनाया या उसे आपूर्ति की। यह भी सिद्ध नहीं हुआ कि बम किसने लगाया। घटना के बाद विशेषज्ञों ने सबूत एकत्र नहीं किए, जिससे सबूतों में गड़बड़ी हुई।
कोर्ट ने यह भी कहा कि धमाके के बाद पंचनामा ठीक से नहीं किया गया, घटनास्थल से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए और बाइक का चेसिस नंबर कभी रिकवर नहीं हुआ। साथ ही, वह बाइक साध्वी प्रज्ञा के नाम से थी, यह भी साबित नहीं हो पाया।