क्या मौलाना अरशद मदनी ने बांग्लादेश की घटना पर सवाल उठाया है और भारत में नफरत और लिंचिंग पर चुप क्यों हैं?
सारांश
Key Takeaways
- बांग्लादेश की घटना की निंदा
- भारत में बढ़ती नफरत
- मॉब लिंचिंग के मामले
- सरकार की चुप्पी
- धार्मिक उग्रवाद का खतरा
नई दिल्ली, 30 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बांग्लादेश में घटित एक जघन्य घटना और भारत में बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक पोस्ट के माध्यम से बांग्लादेश की घटना की कड़ी निंदा की। इसके साथ ही, देश में हो रही मॉब लिंचिंग और धार्मिक नफरत की घटनाओं पर भी अपनी चिंता व्यक्त की।
मौलाना अरशद मदनी ने अपनी पोस्ट में लिखा, "बांग्लादेश में जो कुछ हुआ, वह अत्यंत अमानवीय है। यह केवल एक हत्या नहीं, बल्कि हैवानियत और दरिंदगी की पराकाष्ठा है। इसकी जितनी भी निंदा की जाए, वह कम है। इस्लाम इसकी कतई अनुमति नहीं देता।" उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने ऐसा किया है, उन्होंने न केवल इस्लामी शिक्षाओं का उल्लंघन किया है, बल्कि इस्लाम को बदनाम करने का कार्य भी किया है।
उन्होंने आगे कहा कि धार्मिक उग्रवाद और नफरत हमारे देश को भी नुकसान पहुँचा रही है। क्रिसमस के मौके पर ईसाई समुदाय के साथ जो कुछ हुआ, उसे किसी भी रूप में सही नहीं ठहराया जा सकता। यह संविधान में नागरिकों को दी गई धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।
हाल ही में बिहार के नालंदा में कपड़ों की फेरी लगाने वाले एक मुसलमान से कुछ लोगों ने नाम और धर्म पूछकर इतनी बेरहमी से मारपीट की कि वह अस्पताल में दम तोड़ दिया। केरल में भी एक दलित युवक को बांग्लादेशी बताकर मार दिया गया। ओडिशा में भी पश्चिम बंगाल के तीन मुस्लिम मजदूरों की मॉब लिंचिंग हुई, जिसमें से एक की मौत हो गई।
मौलाना ने यह भी कहा कि दुख की बात है कि इन घटनाओं की न तो सरकार ने निंदा की और न ही मंत्रिमंडल के किसी सदस्य ने इस पर कोई बयान दिया। जबकि बांग्लादेश की घटना पर टीवी चैनलों में चर्चा हो रही है और भारत में हो रही मॉब लिंचिंग पर चुप्पी साधी जा रही है। यह बेहद अफसोसनाक है। क्या इसे दोगले रवैये का नाम दिया जाए? यकीनन यह वह भारत नहीं है, जिसका सपना महात्मा गांधी, शेखुल हिंद, मोतीलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद और हमारे बुज़ुर्गों ने देखा था।