क्या छत्रपति शिवाजी के बाघ नख देखकर इतिहास की याद आती है?: मोहन भागवत

सारांश
Key Takeaways
- छत्रपति शिवाजी महाराज के बाघ नख का महत्व समझें।
- तरुणों के लिए व्यायाम और युद्ध कौशल की आदत बनाना आवश्यक है।
- संस्कृत का विकास और संरक्षण महत्वपूर्ण है।
- संस्कृत को सभी स्तरों पर सीखना चाहिए।
- आत्मनिर्भरता के लिए ज्ञान का विकास जरूरी है।
नागपुर, 7 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गुरुवार को नागपुर के केंद्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित छत्रपति शिवाजी महाराज के 'बाघ नख' का अवलोकन किया। इस अवसर पर अखाड़ों ने उनके सामने प्राचीन शास्त्रीय कला का प्रदर्शन किया, जिसमें दानपट्टा, दंड युद्ध और तलवारबाजी शामिल थे।
मोहन भागवत ने मीडिया से बातचीत में कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के 'बाघ नख' को देखकर हमें अपने वीरता के इतिहास की याद आती है, इसे सभी को देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि तरुणों में व्यायाम और इसके प्रति आदत बनानी चाहिए।
इससे पहले, मोहन भागवत ने नागपुर में एक कार्यक्रम में कहा था कि संस्कृत देश की सभी भाषाओं की जननी है। सभी भाषाओं के विकास के साथ-साथ संस्कृत के विकास को भी राजकीय संरक्षण मिलना आवश्यक है। संस्कृत को संचार का माध्यम बनाना चाहिए और इसे घर-घर तक पहुंचाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि संस्कृत वह भाषा है जो हमारे भावों को विकसित करती है। यह भाषा सभी को आनी चाहिए। यदि हम उस भाव के अनुसार जीवन जीते हैं, तो संस्कृत का भी विकास होगा। देश की परिस्थितियों के अनुसार भाषा का विकास होता है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि मैंने खुद यह भाषा सीखी है, लेकिन मैं धाराप्रवाह नहीं बोल सकता। संस्कृत विश्वविद्यालय को सरकारी संरक्षण के साथ-साथ जनता का भी संरक्षण मिलना जरूरी है। उन्होंने कहा कि 'आत्मनिर्भर' बनने के लिए सभी सहमत हैं, लेकिन इसके लिए हमें अपनी बुद्धि और ज्ञान का विकास करना होगा।