क्या नागुला चविथी और विनायकी चतुर्थी के महासंयोग पर विशेष उपाय कर सकते हैं?
सारांश
Key Takeaways
- नागुला चविथी और विनायकी चतुर्थी का महासंयोग विशेष महत्व रखता है।
- इस दिन गणपति की पूजा से आशीर्वाद प्राप्त करें।
- उपवास के साथ विशेष पूजा विधि का पालन करें।
- चंद्रमा को अर्घ्य देना अत्यंत शुभ होता है।
- इस दिन किए गए उपाय से ग्रहबाधा और ऋण से मुक्ति संभव है।
नई दिल्ली, २४ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि शनिवार को है। इस दिन विनायकी चतुर्थी और नागुला चविथी का विशेष महत्व है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, शनिवर को सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा वृश्चिक राशि में होंगे। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह ११ बजकर ४२ मिनट से शुरू होगा और दोपहर १२ बजकर २७ मिनट तक रहेगा। साथ ही राहुकाल का समय सुबह ९ बजकर १७ मिनट से १० बजकर ४१ मिनट तक रहेगा।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नागुला चविथी मनाई जाती है, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यह पर्व उत्तर भारत के नागपंचमी के समान है, जिसमें नाग देवता की पूजा की जाती है।
हिंदू धर्म में सर्पों को पूजनीय माना गया है और नागुला चविथी पूजा में बारह विशिष्ट नागों की पूजा की जाती है। यह पूजा नाग देवताओं को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती है।
इस दिन विनायकी चतुर्थी भी है, जिसे वरद विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन जातक गणपति से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास रख सकते हैं। ज्ञान और धैर्य जैसे नैतिक गुणों का जीवन में बहुत महत्व है। जिनके पास ये गुण होते हैं, वे जीवन में उन्नति करते हैं।
पराणों में विनायकी चतुर्थी का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है। विनायकी व्रत की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद पीले वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को साफ करके की जानी चाहिए। इसके बाद गजानन की प्रतिमा के सामने दुर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करें। बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं, जिसमें से ५ लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को करें और ५ भगवान के चरणों में रखें। शेष प्रसाद में वितरित करें।
पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, और संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। 'ऊं गं गणपतये नमः' मंत्र का १०८ बार जाप करें। शाम के समय गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है।
चतुर्थी की रात को चंद्रमा को अर्घ्य देना अत्यंत शुभ होता है। चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए "सिंहिका गर्भसंभूते चन्द्रमांडल सम्भवे। अर्घ्यं गृहाण शंखेन मम दोषं विनाशय॥" मंत्र बोलकर जल अर्पित करें। यदि संभव हो तो चतुर्थी का व्रत रखें, जिससे ग्रहबाधा और ऋण जैसे दोष शांत होते हैं।