क्या मराठी पर गर्व करते हुए नवनीत राणा ने हिंदी को सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बताया?

सारांश
Key Takeaways
- नवनीत राणा का हिंदी को सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बताना।
- भाषा विवाद में ठाकरे बंधुओं की भूमिका।
- राजनीतिक लाभ के लिए भाषा का उपयोग।
- महाराष्ट्र सरकार के प्रस्तावों का हालिया रद्द होना।
- भाषाई विविधता का महत्व।
अमरावती, 13 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महायुति शासित महाराष्ट्र में भाषा विवाद का मुद्दा फिर से ताजा हुआ है। इस बार इसमें पूर्व सांसद एवं भाजपा नेता नवनीत राणा की भी भागीदारी देखी गई। उन्होंने रविवार को ठाकरे बंधुओं (उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे) पर तीखे हमले किए।
भाजपा नेता नवनीत राणा ने कहा, "मुझे मराठी भाषा पर गर्व है, लेकिन हिंदी इस देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।" उन्होंने ठाकरे बंधुओं पर भाषा विवाद को लेकर राजनीतिक लाभ उठाने का आरोप लगाया और इसकी कड़ी आलोचना की। उन्होंने अफसोस व्यक्त करते हुए कहा, "लोग मेरी भाषा पर हंसते हैं, लेकिन मैंने मराठी बोलना नहीं छोड़ा।"
महाराष्ट्र में मराठी-गैर मराठी भाषा के मुद्दे पर राजनीतिक विवाद जारी है। इस संदर्भ में शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे वर्षों बाद एक मंच पर आए। उन्होंने सबसे पहले मराठी और गैर मराठी भाषा के मुद्दे को उठाया। नवनीत राणा ने ठाकरे बंधुओं पर निशाना साधते हुए कहा, "राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अपनी राजनीतिक आग भड़काने के लिए देवेंद्र फडणवीस की आलोचना करते हैं।"
भाजपा नेता नवनीत राणा ने सांस्कृतिक भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में ये बातें कही।
गौरतलब है कि प्रदेश में भाषा विवाद तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र सरकार ने दो सरकारी प्रस्ताव जारी किए और बाद में उन्हें वापस ले लिया। इन प्रस्तावों में कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का प्रस्ताव था। इस कदम पर विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया हुई, और मनसे जैसे क्षेत्रीय संगठनों ने भी विरोध प्रदर्शन किए। शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस ने भी मराठी भाषी राज्य पर हिंदी थोपने के लिए सरकार की आलोचना की।
फिलहाल, महाराष्ट्र सरकार ने उन दो सरकारी प्रस्तावों को रद्द कर दिया है, जिनमें कक्षा 1 से 5 तक के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में लागू करने की मांग की गई थी।