क्या नवरात्रि में मां के इन शक्तिपीठों पर हाजिरी लगाना जरूरी है?

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क्या नवरात्रि में मां के इन शक्तिपीठों पर हाजिरी लगाना जरूरी है?

सारांश

नवरात्रि के पावन पर्व पर शक्तिपीठों की महिमा अपरंपार है। जानें, कौन से शक्तिपीठ आपकी मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकते हैं। ये मंदिर धार्मिक ही नहीं, बल्कि पौराणिक कथाओं से भी जुड़ें हैं।

Key Takeaways

  • नवरात्रि के दौरान शक्तिपीठों पर हाजिरी लगाना महत्वपूर्ण है।
  • इन मंदिरों की महत्ता धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से है।
  • हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के शक्तिपीठ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
  • श्रद्धालुओं की आस्था और परंपराएं आज भी जीवित हैं।
  • इन शक्तिपीठों की कहानियां पौराणिक हैं।

नई दिल्ली, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर देशभर में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए विभिन्न मंदिरों में पहुंच रहे हैं, विशेषकर शक्तिपीठों पर भारी भीड़ देखी जा रही है। भारत और विश्व में कुल 51 सिद्ध शक्तिपीठ हैं, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण शक्तिपीठ पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में स्थित हैं। ये शक्तिपीठ न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पूजनीय हैं, बल्कि इनसे जुड़ी मान्यताएं और पौराणिक कथाएं भी इनकी महत्ता को और बढ़ाती हैं।

हरियाणा के थानेसर में स्थित सावित्री शक्तिपीठ या मां भद्रकाली मंदिर भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यह मंदिर द्वैपायन झील के समीप स्थित है। पुराणों के अनुसार, माता सती का दाहिना टखना इस स्थान के सामने के कुएं में गिरा था। इसी कारण इसे सावित्रीपीठ, देवीकूप और कालिकापीठ भी कहा जाता है। यहां सती को सावित्री और भगवान शिव को स्थानु महादेव के नाम से पूजा जाता है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र स्थानेश्वर या थानेसर के नाम से विख्यात है, क्योंकि सावित्री के पति का नाम स्थानु था। इस मंदिर में घोड़े दान करने की परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। कहा जाता है कि पांडवों ने विजय की प्राप्ति के उपलक्ष्य में यहां घोड़े दान किए थे।

पंजाब के जालंधर में स्थित स्तनपीठ मां त्रिपुरमालिनी देवी मंदिर या देवी तालाब मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर मां सती का बाया वक्ष (स्तन) गिरा था। यह शक्तिपीठ रेलवे स्टेशन से मात्र 1 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में है। यहां की देवी की शक्ति त्रिपुरमालिनी और भैरव के भयंकर रूप की पूजा की जाती है। यह शक्तिपीठ त्रिगर्त तीर्थ के नाम से भी विख्यात है। हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से मां की कृपा प्राप्त करने के लिए यहां आते हैं।

राजस्थान के अजमेर के पास पुष्कर में स्थित मणिबंध शक्तिपीठ को गायत्री शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। यह शक्तिपीठ देवी सती की कलाइयों के गिरने के स्थान पर स्थित है। यहां देवी सती को गायत्री स्वरूप में पूजा जाता है। यह शक्तिपीठ गायत्री मंत्र साधना का प्रमुख केंद्र भी है। अजमेर से लगभग 11 किलोमीटर दूर गायत्री पहाड़ियों पर बसा यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है।

भरतपुर के निकट विराट नगर में स्थित देवी अंबिका शक्तिपीठ भी 51 सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। यहां देवी सती के पैर की उंगलियां गिरी थीं। यह मंदिर देवी अंबिका को समर्पित है और भगवान शिव की पूजा अमृतेश्वर स्वरूप में की जाती है। जयपुर से लगभग 90 किलोमीटर दूर यह स्थान नवरात्रि, दीपावली जैसे प्रमुख त्योहारों पर श्रद्धालुओं से भर जाता है।

Point of View

बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का भी अभिन्न हिस्सा है। इन स्थलों पर श्रद्धालुओं की भीड़ यह दर्शाती है कि हमारी परंपराएं आज भी जीवित हैं।
NationPress
30/09/2025

Frequently Asked Questions

नवरात्रि में कौन से शक्तिपीठों पर जाना चाहिए?
हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के प्रमुख शक्तिपीठों पर जाना चाहिए।
शक्तिपीठों की महत्ता क्या है?
ये शक्तिपीठ धार्मिक और पौराणिक कथाओं से जुड़े होने के कारण अत्यंत पूजनीय हैं।