क्या 22 जून को नेताजी ने कांग्रेस को अलविदा कहकर फॉरवर्ड ब्लॉक की नींव रखी?

सारांश
Key Takeaways
- नेताजी ने 22 जून 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
- उनका नारा आज़ादी की लड़ाई को प्रेरित करता था।
- फॉरवर्ड ब्लॉक ने स्वतंत्रता संग्राम में नई ऊर्जा भरी।
- नेताजी ने समाजवादी विचारों को बढ़ावा दिया।
- यह संगठन आज़ादी के लिए एकजुटता का प्रतीक था।
नई दिल्ली, 21 जून (राष्ट्र प्रेस)। भारत की आज़ादी की लड़ाई में कुछ ऐसे नाम हैं, जो इतिहास के पन्नों में अमर हैं। इन नामों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम सबसे प्रमुख है, जिनके अदम्य उत्साह और जज़्बे ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव को हिला दिया।
23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही तेज-तर्रार रहे। पढ़ाई में अव्वल, लेकिन देशभक्ति का जज़्बा ऐसा कि उन्होंने आईसीएस की नौकरी को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा, "अंग्रेजों की गुलामी में नौकरी? नहीं, मैं तो आज़ादी का सिपाही बनूंगा!" यहीं से शुरू हुआ एक क्रांतिकारी का सफर।
कांग्रेस में गांधीजी के साथ काम करते हुए सुभाष ने महसूस किया कि सिर्फ अहिंसा से काम नहीं चलेगा। उनका नारा था, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा!" इस नारे ने युवाओं के दिलों में उत्साह भर दिया। 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी जब उनकी बात नहीं मानी गई, तो सुभाष ने अपना रास्ता चुना।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम की गाथा में एक नया अध्याय तब जुड़ा, जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस से अलग होकर अपने बुलंद हौसलों के साथ 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की। यह 22 जून 1939 का एक ऐतिहासिक दिन था, जब नेताजी ने अपने क्रांतिकारी विचारों को नया आकार देने का निर्णय लिया।
नेताजी का मानना था कि आज़ादी की लड़ाई को और तेज करना होगा। वे चाहते थे कि भारत छलांग लगाए, न कि छोटे-छोटे कदमों से। कांग्रेस की नीतियों से असहमति के चलते नेताजी ने 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने तुरंत अपने समर्थकों को एकजुट किया और 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की, जिसका मकसद "आजादी, अब और अभी!" था।
फॉरवर्ड ब्लॉक कोई साधारण संगठन नहीं था। यह नेताजी के उस जुनून का प्रतीक था, जो भारत को ब्रिटिश हुकूमत की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए तड़प रहा था। नेताजी ने युवाओं को जोड़ा, जिनके दिल में देशभक्ति की आग धधक रही थी। फॉरवर्ड ब्लॉक ने न केवल आज़ादी की मांग को और मुखर किया, बल्कि समाजवादी विचारों को भी बढ़ावा दिया, ताकि आज़ाद भारत में समानता और न्याय का सपना साकार हो सके।
नेताजी का यह कदम उस समय के राजनीतिक गलियारों में भूचाल लाने वाला था। कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज हैरान थे, और ब्रिटिश सरकार की नींद उड़ गई थी। फॉरवर्ड ब्लॉक ने न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी। नेताजी ने साफ कर दिया था कि वे न तो झुकेंगे, न रुकेंगे। उनकी यह सोच बाद में आज़ाद हिंद फौज के गठन में भी दिखाई दी।
आज जब हम नेताजी के इस साहसिक कदम को याद करते हैं, तो यह बात याद आती है कि फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना केवल एक संगठन का जन्म नहीं था, बल्कि यह नेताजी के उस अटल विश्वास का प्रतीक था कि भारत की आज़ादी का रास्ता क्रांति और एकजुटता से होकर गुजरता है।