क्या 'ऊं' सिर्फ एक मंत्र है या मन की शांति और ऊर्जा का सरल उपाय?
सारांश
Key Takeaways
- ऊं का जप मन को शांति और ऊर्जा प्रदान करता है।
- यह साधना में स्थिरता लाता है।
- वैज्ञानिक दृष्टि से ऊं का उच्चारण शरीर में कंपन उत्पन्न करता है।
- रोजाना 108 बार जप करने से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- यह घर में सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
नई दिल्ली, 1 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। ऊं एक अत्यंत महत्वपूर्ण मंत्र है, जिसे ब्रह्मांड की पहली ध्वनि माना जाता है। इसे तीन भागों (अ, उ और म) में विभाजित किया गया है। ‘अ’ सृजन और व्यापकता का प्रतीक है, ‘उ’ बुद्धि और संचालन का, और ‘म’ अनंतता और स्थिरता का। इन तीनों का सम्मिलित अर्थ यह है कि 'ऊं' में परम सत्ता का संपूर्ण स्वरूप समाहित है। यही कारण है कि इसे सभी मंत्रों का बीज मंत्र कहा जाता है।
पुराणों में यह भी उल्लेखित है कि सृष्टि के आरंभ में जब पहली ध्वनि गूंजी, वह ऊं थी। यह ध्वनि किसी टकराव से नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की अपनी ऊर्जा से उत्पन्न हुई थी। ध्यान की गहन अवस्था में साधक आज भी इसे सुनते हैं और इसे परम शांति का स्रोत मानते हैं।
ऊं का जप मन और शरीर दोनों को शांति प्रदान करता है। इससे साधक को आत्मा और परमात्मा के निकट जाने का अनुभव होता है। साधना में स्थिरता आती है, मौन और अंतरात्मा की जागृति बढ़ती है। यही कारण है कि हर मंत्र की शुरुआत ऊं से होती है, जैसे 'ऊं नमः शिवाय' या 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय'।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी ऊं का उच्चारण शरीर में कंपन उत्पन्न करता है। जीभ, तालू, कंठ, फेफड़े और नाभि में यह कंपन ग्रंथियों और चक्रों को सक्रिय करते हैं। इसके नियमित जप से तनाव और घबराहट दूर होती है, पाचन और रक्त संचार में सुधार होता है, शरीर में ऊर्जा लौटती है और नींद में भी सुधार होता है। कुछ प्राणायाम के साथ करने पर फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है और थकान कम होती है।
वास्तु के अनुसार भी ऊं का जप घर में सकारात्मक ऊर्जा लाता है। वातावरण शांत होता है और मानसिक तनाव कम होता है। सकारात्मक शब्दों से हार्मोन बनते हैं और नकारात्मक शब्दों से विषैले रसायन। इसीलिए ऊं की लय मन और हृदय पर अमृत की तरह असर करती है।
अधिकतर लोग 108 बार ऊं का जप करते हैं। ऐसा करने से शरीर तनावमुक्त होता है, ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, मनोबल मजबूत होता है और व्यवहार में धैर्य आता है। बच्चों की पढ़ाई और स्मरण शक्ति पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
जप की उचित विधि यह है कि प्रातः स्नान के बाद शांत स्थान पर पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन या वज्रासन में बैठें। 'ओ' को लंबा खींचें और अंत में 'म्' हल्की गूंज के साथ करें। जप माला का उपयोग भी किया जा सकता है।