क्या पाकिस्तान को 88 घंटे के भीतर संघर्ष विराम की मांग करनी पड़ी?

सारांश
Key Takeaways
- ऑपरेशन सिंदूर ने भारतीय सेना की सटीकता को प्रमाणित किया।
- पाकिस्तान ने 88 घंटे में संघर्ष विराम की मांग की।
- अग्निशोध रिसर्च सेल का उद्देश्य आधुनिकीकरण है।
- भारतीय सेना पांचवीं पीढ़ी के संघर्षों के लिए तैयार है।
- शैक्षणिक अनुसंधान को युद्धक्षेत्र में लागू किया जाएगा।
नई दिल्ली, 4 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने 'ऑपरेशन सिंदूर' को एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया है। उन्होंने कहा कि यह ऑपरेशन इंटेलिजेंस-आधारित प्रतिक्रिया थी, जिसने भारत की आतंकवाद-विरोधी डॉक्ट्रिन को नया रूप दिया। त्रि-सेवा आक्रामकता ने भारत की सटीक, दंडात्मक और समन्वित कार्रवाई की क्षमता को प्रदर्शित किया, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान को 88 घंटे के भीतर संघर्षविराम की मांग करनी पड़ी।
उन्होंने बलों की पारंपरिक ताकत और आधुनिक क्षमताओं के मिश्रण की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने विभिन्न सुधारों के माध्यम से भारतीय सेना की ‘दशक परिवर्तन’ के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराया।
सोमवार को आईआईटी मद्रास में बोलते हुए उन्होंने कहा कि 88 घंटे का 'ऑपरेशन सिंदूर' पैमाने, सीमा, गहराई और रणनीतिक प्रभाव के मामले में अभूतपूर्व था। इसे डिप्लोमैटिक, इन्फॉर्मेशनल, मिलिट्री, इकनॉमिक स्पेक्ट्रम में क्रियान्वित किया गया। भारतीय सशस्त्र बल पांचवीं पीढ़ी के संघर्षों के लिए तैयार हैं, जो गैर-संपर्क युद्ध, रणनीतिक गति, और मनोवैज्ञानिक प्रभुत्व द्वारा संचालित होंगे।
यहाँ रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम के रूप में, भारतीय सेना ने आईआईटी मद्रास के साथ मिलकर ‘अग्निशोध’ भारतीय सेना अनुसंधान सेल की स्थापना की है।
उन्होंने इस अनुसंधान सुविधा का उद्घाटन चेन्नई में अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान किया। यह पहल भारतीय सेना के व्यापक परिवर्तन ढांचे का हिस्सा है, जिसे जनरल उपेंद्र द्विवेदी द्वारा प्रतिपादित “पांच परिवर्तन स्तंभों” द्वारा निर्देशित किया गया है।
अग्निशोध विशेष रूप से “आधुनिकीकरण और प्रौद्योगिकी समावेशन” को आगे बढ़ाती है। यह दर्शाती है कि भारतीय सेना शैक्षणिक अनुसंधान को वास्तविक समय के परिचालन उपयोगों से कैसे सहजता से जोड़ना चाहती है। “स्वदेशीकरण से सशक्तीकरण” के तहत आत्मनिर्भरता के प्रति भारतीय सेना की प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए, उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय तकनीकी मिशनों के अंतर्गत प्रमुख सहयोगों का उल्लेख किया।
उन्होंने आईआईटी दिल्ली, आईआईटी कानपुर और आईआईएससी बेंगलुरु में स्थापित भारतीय सेना द्वारा शैक्षणिक नवाचारों का उपयोग किए जाने वाले प्रोजेक्ट्स की सराहना की। आईआईटी मद्रास की रक्षा अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट संभव और आर्मी बेस वर्कशॉप के साथ एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग में साझेदारी जैसे प्रयास नई मिसालें कायम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अग्निशोध अनुसंधान केंद्र, शैक्षणिक उत्कृष्टता को युद्धक्षेत्र में नवाचार में बदल देगा और ‘विकसित भारत 2047’ के सफर को शक्ति प्रदान करेगा।
आईआईटी मद्रास में होने वाला अग्निशोध सैन्य कर्मियों को एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग, साइबरसिक्योरिटी, क्वांटम कंप्यूटिंग, वायरलेस कम्युनिकेशन और अनमैनड एरियल सिस्टम्स सहित उभरते क्षेत्रों में कौशल प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इससे सशस्त्र बलों के भीतर एक टेक-सशक्त मानव संसाधन आधार तैयार होगा। सेना प्रमुख ने प्रशिक्षण अकादमी का भी दौरा किया, जहां उन्हें अकादमी के बुनियादी ढांचे, आधुनिक प्रशिक्षण पद्धतियों और समकालीन चुनौतियों के लिए भविष्य के सैन्य लीडर्स को तैयार करने के लिए किए गए पहलों पर ब्रीफ किया गया।
उन्होंने प्रशिक्षक स्टाफ के प्रयासों की प्रशंसा की, जो उत्कृष्टता को बढ़ावा देने और कैडेट्स में मूल सैन्य मूल्यों को स्थापित करने में जुटे हैं। उन्होंने पूर्व सैनिकों के समूह से भी बातचीत की, उनके राष्ट्र और सशस्त्र बलों के प्रति सतत योगदान को स्वीकार किया। उन्होंने चार विशिष्ट पूर्व सैनिकों को सम्मानित किया।