क्या पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारत में वैचारिक क्रांति का सूत्रधार बनने का कार्य किया?

सारांश
Key Takeaways
- पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म २५ सितंबर १९१६ को हुआ।
- उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो बाद में भाजपा बनी।
- उनकी विचारधारा में 'अंत्योदय' और 'एकात्म-मानवदर्शन' प्रमुख हैं।
- उनकी सोच आज भी भाजपा की नीतियों को प्रभावित करती है।
- उन्हें ५२ वर्ष की आयु में राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
नई दिल्ली, २४ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। राजनीति में तंज और मजाक में विशेष अंतर नहीं होता, लेकिन अक्सर विरोधियों के हमलों को अपने लाभ में बदलने की कला कुछ ही सियासतदानों में होती है। जिनके पास ये गुण होते हैं, वे देश या पार्टी का नेतृत्व करते हैं। यह विशेषता केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में नहीं है, जिन्हें कई बार व्यक्तिगत हमलों का सामना करना पड़ा, बल्कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय में भी ये गुण विद्यमान थे। उन्होंने मजाक को उस तरह से अपनाया कि वह सकारात्मक छवि के साथ उनकी पहचान बन गया।
यह कहानी उस समय की है जब दीनदयाल उपाध्याय अपनी चाची के कहने पर एक सरकारी प्रतियोगी परीक्षा में शामिल हुए। इस परीक्षा में उन्होंने धोती और कुर्ता पहना था, जबकि अन्य परीक्षार्थी पश्चिमी शैली के सूट में थे। मजाक में उनके दोस्तों ने उन्हें 'पंडित जी' कहकर पुकारना शुरू कर दिया, और यही नाम धीरे-धीरे उनकी पहचान बन गया।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म २५ सितंबर १९१६ को मथुरा जिले के छोटे से गांव नगला चंद्रभान में हुआ। ७ साल की उम्र में वे अपने माता-पिता के प्यार से वंचित हो गए। इसके बावजूद, उन्होंने अपने जीवन में संघर्ष को हंसते-हंसते स्वीकार किया।
दीनदयाल उपाध्याय ने अपने बचपन से ही जीवन के महत्व को समझा और समाज के लिए नेक कार्य करने में अपना जीवन समर्पित किया।
उनकी विचारधारा से भारतीय जनसंघ, जो बाद में भाजपा बनी, देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई।
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना ६ अप्रैल, १९८० को हुई, लेकिन इसका इतिहास भारतीय जनसंघ से जुड़ा हुआ है, जिसका विचार श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय ने किया था।
जब देश में 'नेहरूवाद' और पाकिस्तान-बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे थे, तब एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल की आवश्यकता महसूस की गई। इसके परिणामस्वरूप २१ अक्टूबर १९५१ को भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई।
जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कश्मीर की जेल में डाल दिया गया, तब पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने नई पार्टी को मजबूत करने का कार्य किया। १९६७ में उनके नेतृत्व में कांग्रेस का एकाधिकार टूटा।
भारतीय जनसंघ ने 'जनता पार्टी' का रूप लिया और १ मई १९७७ को इसका विलय जनता पार्टी में हुआ। ६ अप्रैल १९८० को एक नए संगठन 'भारतीय जनता पार्टी' की घोषणा की गई।
आज भाजपा के सिद्धांतों में वही 'पंडित जी' जीवित हैं, जिन्होंने 'एकात्म-मानवदर्शन' की परिकल्पना की। पार्टी का अंत्योदय, सुशासन, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर जोर है।
भाजपा ने ५ प्रमुख सिद्धांतों के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की, जिन्हें 'पंचनिष्ठा' कहा जाता है।
इन सिद्धांतों में सबसे महत्वपूर्ण 'अंत्योदय' है, जो समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के उत्थान की बात करता है।
दीनदयाल उपाध्याय को जनसंघ की आर्थिक नीति का रचनाकार माना जाता है। उनका मानना था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है।
भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस महान नेता ने ५२ वर्ष की आयु में अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिए। ११ फरवरी १९६८ का दिन देश के राजनीतिक इतिहास में एक दुखद दिन था।