क्या परसा सीट पर गैर-यादव उम्मीदवारों का दबदबा बना रहेगा?

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क्या परसा सीट पर गैर-यादव उम्मीदवारों का दबदबा बना रहेगा?

सारांश

बिहार की परसा विधानसभा सीट ने हमेशा से यादव उम्मीदवारों को ही विजयी बनाया है। यहाँ की मजबूत जातीय निष्ठा और राजनीतिक विरासत ने इस सीट को विशेष बना दिया है। जानिए इस क्षेत्र की राजनीतिक कहानी और आगामी चुनावों में संभावनाएँ।

Key Takeaways

  • परसा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में जातीय निष्ठा का प्रभाव है।
  • यहाँ गैर-यादव उम्मीदवारों के लिए जीत की संभावना नहीं है।
  • राजनीतिक विरासत का गहरा प्रभाव है, विशेष रूप से दरोगा प्रसाद राय के परिवार का।
  • विधानसभा क्षेत्र में अब तक 18 बार चुनाव हो चुके हैं।
  • राजद और जदयू के बीच प्रतिस्पर्धा जारी है।

पटना, 4 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के सारण जिले के परसा विधानसभा क्षेत्र ने राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। यहाँ अब तक 18 बार चुनाव हो चुके हैं, लेकिन इस सीट की एक दिलचस्प बात यह है कि यहाँ की जनता ने कभी भी गैर-यादव को विधानसभा में नहीं पहुंचने दिया। यहाँ के निवासियों की जातीय निष्ठा इतनी मजबूत है कि वे नेताओं के दल बदलने पर भी प्रभावित नहीं होते।

गंगा नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र परसा बाजार के लिए स्थानीय व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र है। गंगा घाट धार्मिक अनुष्ठानों और स्नान के लिए भी प्रसिद्ध है। प्रशासनिक दृष्टि से, परसा एक सामुदायिक विकास खंड है, जो गंडक नदी से केवल 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

यह क्षेत्र कृषि प्रधान है, जहाँ धान, गेहूं, मक्का और दालों के साथ-साथ केले की खेती भी प्रगति कर रही है। डेयरी और पोल्ट्री व्यवसाय से ग्रामीण जनसंख्या को अतिरिक्त आय का एक स्रोत मिल रहा है। एकमा सबडिवीजन मुख्यालय यहाँ से 7 किलोमीटर, जिला मुख्यालय छपरा 42 किलोमीटर और पटना 60 किलोमीटर दूर है।

राजनीतिक दृष्टि से, परसा विधानसभा क्षेत्र की एक अलग पहचान रही है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की राजनीतिक विरासत ने इस क्षेत्र पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। यहाँ जीत हासिल करना किसी के लिए भी आसान नहीं है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यहाँ भाजपा का कभी खाता नहीं खुला और कांग्रेस ने 1985 के बाद कभी जीत नहीं पाई।

हाल के वर्षों में, यहाँ राजद और जदयू के बीच मुकाबला रहा है, लेकिन कोई स्थायी स्थिति नहीं है। 1951 में अस्तित्व में आया परसा विधानसभा क्षेत्र अब तक 18 बार चुनाव हो चुका है। 1952 में पहला चुनाव हुआ था और कांग्रेस के टिकट पर दरोगा प्रसाद राय जनता की पहली पसंद बने। इसके बाद अगले 7 विधानसभा चुनावों तक लोगों का मोहभंग नहीं हुआ।

1977 के चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार रामानंद प्रसाद यादव को यहाँ का प्रतिनिधि चुना गया। इसके बाद से, परसा की जनता ने तीन चुनावों में विभिन्न उम्मीदवारों को मौका दिया। हालाँकि, 1985 के चुनाव में जनता ने फिर से दरोगा प्रसाद राय के परिवार का समर्थन किया। उनके बेटे चंद्रिका राय ने पिता की राजनीतिक विरासत को बखूबी संभाला और लगातार 5 विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

हालांकि, उन्होंने समय के अनुसार राजनीतिक दल बदलने का सिलसिला बनाए रखा। 2015 में उन्हें छठी बार जीत मिली। लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव के साथ चंद्रिका राय की बेटी ऐश्वर्या राय की शादी हुई थी, लेकिन यह रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चला। इस कारण चंद्रिका प्रसाद ने राजद से इस्तीफा दे दिया और अगले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

महत्वपूर्ण बात यह है कि परसा से कोई भी गैर-यादव उम्मीदवार कभी नहीं जीता है।

Point of View

जो अन्य क्षेत्रों के लिए एक अध्ययन का विषय हो सकता है।
NationPress
04/10/2025

Frequently Asked Questions

परसा विधानसभा क्षेत्र में कितने बार चुनाव हुए हैं?
परसा विधानसभा क्षेत्र में अब तक 18 बार चुनाव हो चुके हैं।
क्या कभी गैर-यादव उम्मीदवार ने परसा सीट जीती है?
नहीं, परसा से कोई भी गैर-यादव उम्मीदवार कभी नहीं जीता है।
इस क्षेत्र का मुख्य राजनीतिक दल कौन सा है?
इस क्षेत्र में मुख्य रूप से राजद और जदयू का मुकाबला रहता है।
परसा विधानसभा क्षेत्र की मुख्य विशेषता क्या है?
यहाँ की जनता की जातीय निष्ठा और राजनीतिक विरासत इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं।
क्या दरोगा प्रसाद राय की राजनीतिक विरासत अभी भी प्रभावी है?
हाँ, दरोगा प्रसाद राय की राजनीतिक विरासत आज भी इस क्षेत्र में गहरा प्रभाव डालती है।