क्या पश्चिम बंगाल ओबीसी सूची विवाद में सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी सही है?
सारांश
Key Takeaways
- पश्चिम बंगाल ओबीसी सूची विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई महत्वपूर्ण है।
- मुख्य न्यायाधीश ने हाईकोर्ट की कार्यवाही पर सवाल उठाया।
- सुप्रीम कोर्ट का निर्देश न्यायिक अनुशासन का पालन करने के लिए है।
- राज्य सरकार ने ओबीसी सूची को लेकर अपील दायर की है।
- अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
नई दिल्ली, 6 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा जारी की गई नई ओबीसी सूची को लेकर विवाद पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने कलकत्ता हाईकोर्ट की कार्यवाही पर कड़ा रुख अपनाया।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही हाईकोर्ट को इस मामले पर सुनवाई न करने का निर्देश दिया था, तो हाईकोर्ट फिर इसे क्यों आगे बढ़ा रहा है?
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तब तक हाईकोर्ट को इस पर कोई भी सुनवाई नहीं करनी चाहिए।
इससे पहले, 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को राहत दी थी। अदालत ने कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा जारी उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें राज्य सरकार की नई ओबीसी सूची के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया गया था।
ममता सरकार ने ओबीसी-ए और ओबीसी-बी श्रेणियों के तहत 140 उपजातियों को शामिल करते हुए एक नई सूची जारी की थी। हाईकोर्ट ने इस नोटिफिकेशन को रोकते हुए कहा था कि राज्य सरकार ने बिना पर्याप्त आधार और प्रक्रियागत पारदर्शिता के यह निर्णय लिया है।
कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 के तहत राज्य सरकार के अधिकारों में हस्तक्षेप किया है।
इस अधिनियम के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह ओबीसी समुदायों की सूची तैयार कर सके और उन्हें सरकारी नौकरियों व सेवाओं में आरक्षण का लाभ दे सके।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया था कि हाईकोर्ट इस मामले पर आगे न बढ़े, तो उस निर्देश का पालन न करना न्यायिक अनुशासन का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।