क्या प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने मछली पालक शशिकांत की तकदीर बदली?

Key Takeaways
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने मछली पालन को आधुनिक और लाभकारी बनाया है।
- यह योजना किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर रही है।
- शशिकांत महतो जैसे उदाहरण इस योजना की सफलता को दर्शाते हैं।
- आधुनिक तकनीकों ने मछली पालन की लागत को कम किया है।
- इस योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न किए हैं।
रामगढ़, 10 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने अब अपने पांच वर्षों का सफर पूरा कर लिया है। यह महत्वाकांक्षी योजना, जो 10 सितंबर 2020 को शुरू हुई, ने मछली पालन को आधुनिक और लाभकारी बनाकर लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया है।
झारखंड के रामगढ़ जिले में इस योजना का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है, जहां मछली पालन ने न केवल किसानों को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि नए रोजगार के अवसर भी उत्पन्न किए हैं।
रामगढ़ के शशिकांत महतो इस बदलाव का एक सजीव उदाहरण हैं। पहले खदानों में मेहनत करने वाले शशिकांत ने मछली पालन में अपनी किस्मत आजमाई और अब उनकी ज़िन्दगी पूरी तरह बदल चुकी है।
इस योजना के अंतर्गत उन्हें सस्ता लोन और तकनीकी सहायता प्राप्त हुई, जिससे उन्होंने मछली पालन का व्यवसाय शुरू किया।
शशिकांत कहते हैं, “इस योजना ने मेरी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया। पहले मैं खदान में काम करता था, लेकिन अब मछली पालन से मेरी आय कई गुना बढ़ गई है। मेरे साथ 60-65 लोग काम कर रहे हैं, और गांव में रोजगार के नए रास्ते खुले हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि उनकी मेहनत और योजना के सहयोग से वे न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं, बल्कि गांव के अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा बने हैं।
जिला मत्स्य विभाग के अनुसार, यह योजना रामगढ़ में मछली पालन को नई ऊंचाइयों पर ले गई है। आधुनिक तकनीकों जैसे केज कल्चर, बायो-फ्लॉक और रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम ने किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने में मदद की है।
जिला मत्स्य पदाधिकारी डॉ. अरुप कुमार चौधरी ने कहा, “प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने रामगढ़ में मछली पालन को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। केज कल्चर और बायो-फ्लॉक जैसी तकनीकों को अपनाने के साथ-साथ किसानों को मार्केटिंग के लिए सहायता और डीबीटी के माध्यम से आर्थिक मदद उपलब्ध कराई गई है। सौ से अधिक लाभार्थियों की आय और सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है।”
इस योजना के तहत रामगढ़ के मछली पालन से जुड़े किसान अब आत्मनिर्भरता की राह पर हैं। वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं और बेहतर जीवन जी रहे हैं। गांव के लोग अब बाहरी मजदूरी के लिए नहीं जाते, बल्कि अपने क्षेत्र में मछली पालन से अच्छी कमाई कर रहे हैं। पांच वर्षों में इस योजना ने रामगढ़ जैसे जिलों की तस्वीर बदल दी है। मछली पालन अब केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि समृद्धि और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है।