क्या 'वंदे मातरम' और पीएम मोदी का समर्पण है अतुलनीय?
सारांश
Key Takeaways
- वंदे मातरम ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- प्रधानमंत्री मोदी ने इस गीत के महत्व को उजागर किया।
- मोदी आर्काइव ने एक महत्वपूर्ण नोट साझा किया।
- यह गीत मातृभूमि की आजादी का प्रतीक है।
- प्रधानमंत्री मोदी का समर्पण अद्वितीय है।
नई दिल्ली, 8 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। हमारे राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' ने अपनी रचना के 150 अद्भुत वर्ष पूरे कर लिए हैं। यह केवल एक गीत नहीं है, बल्कि भारतीय इतिहास का वह जयघोष है जिसने आजादी के दीवानों में नया उत्साह भरा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को लोकसभा में 'वंदे मातरम' पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि यह सिर्फ एक गीत या राजनीतिक नारा नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम और मातृभूमि की आजादी के लिए एक पवित्र संघर्ष का प्रतीक था।
इस दौरान, मोदी आर्काइव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर प्रधानमंत्री मोदी का वर्षों पुराना हाथ से लिखा एक नोट साझा किया है। मोदी आर्काइव ने पोस्ट में बताया कि नरेंद्र मोदी का वर्षों पहले हाथ से लिखा नोट, जिसमें हमारे वेदों, अरबिंदो, टैगोर और बंकिम के मातृभूमि के दृष्टिकोण का आह्वान किया गया है।
इस नोट में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा-
हमें अपनी सिंधु चाहिए, गंगा चाहिए—
अस्वाभाविक स्थिति को स्वाभाविक बनाना है।
हमारे लिए भारत केवल एक जमीन का टुकड़ा नहीं,
'माता भूमिः। पुत्रोऽहम् पृथिव्याः।'
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’
अरविंद और गुरुदेव ने भारत को जगत्-माता के रूप में देखा।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इसे ‘भुवन-मन-मोहिनी’ कहा,
बंकिमचंद्र ने इसे ‘त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी’ कहा।
यह सरल, सुशोभित, और श्यामल है।
यह हमारी माता है—
इसीलिए इसके विच्छेद का आह्वान हमारे हृदय को पीड़ा देता है। आज, दशकों बाद भी उन्होंने संसद में वंदे मातरम 150 के लिए वही छंद पढ़े।
बता दें कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर मोदी आर्काइव नाम का एक हैंडल है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीवन यात्रा को अभिलेखीय चित्रों, तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से दर्शाता है। मोदी आर्काइव नाम के इस हैंडल में ऑडियो रिकॉर्डिंग, पत्र, समाचार पत्र क्लिप और अन्य सामग्री भी शामिल है।
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रगीत के महत्व पर जोर देते हुए लोकसभा में कहा, "बंकिम दा ने जब 'वंदे मातरम' की रचना की तब स्वाभाविक ही वह स्वतंत्रता आंदोलन का पर्व बन गया। तब पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, 'वंदे मातरम' हर भारतीय का संकल्प बन गया, इसलिए वंदे मातरम की स्तुति में लिखा गया था कि मातृभूमि की स्वतंत्रता की वेदी पर, मोद में स्वार्थ का बलिदान है। यह शब्द 'वंदे मातरम' है। सजीवन मंत्र भी, विजय का विस्तृत मंत्र भी। यह शक्ति का आह्वान है। यह 'वंदे मातरम' है। उष्ण शोणित से लिखो, वत्स स्थली को चीरकर वीर का अभिमान है। यह शब्द 'वंदे मातरम' है।"