क्या जगन्नाथ मिश्रा बिहार की राजनीति के अमिट नायक हैं?

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क्या जगन्नाथ मिश्रा बिहार की राजनीति के अमिट नायक हैं?

सारांश

पंडित जगन्नाथ मिश्रा का जीवन उपलब्धियों और विवादों से भरा रहा। उन्होंने 38 वर्ष की आयु में बिहार के मुख्यमंत्री का पद संभाला और मैथिल संस्कृति को नई पहचान दिलाई। जानें उनके अनसुने किस्से और बिहार की सियासत में उनकी भूमिका।

Key Takeaways

  • जगन्नाथ मिश्रा का राजनीतिक सफर विवादों और उपलब्धियों से भरा रहा।
  • उन्होंने बिहार विश्वविद्यालय में सुधार किए।
  • उनका कार्यकाल शिक्षा और ग्रामीण विकास पर केंद्रित रहा।
  • उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा देना उनका ऐतिहासिक निर्णय था।
  • उनकी सादगी और जनता से जुड़ाव ने उन्हें जननायक बनाया।

नई दिल्ली, 19 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। पंडित जगन्नाथ मिश्रा बिहार की राजनीति के उन अनमोल सितारों में से एक हैं, जिन्होंने शिक्षक से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया। 24 जून 1937 को सुपौल के बलुआ बाजार में जन्मे इस मिथिला के सपूत ने न केवल बिहार की सियासत को एक नई दिशा दी, बल्कि सामाजिक और आर्थिक सुधारों के साथ मैथिल संस्कृति को भी नया सम्मान दिलाया। तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके मिश्रा का जीवन उपलब्धियों, विवादों और सियासी उतार-चढ़ाव की एक ऐसी कहानी है, जो आज भी बिहार के इतिहास के पन्नों पर अमिट है। जगन्नाथ मिश्रा के जीवन और कार्यों की गूंज आज भी बिहार की सियासत में सुनाई देती है। आइए जानते हैं पुण्यतिथि विशेष पर जगन्नाथ मिश्रा से जुड़े अनसुने किस्से।

उनकी यात्रा एक शिक्षक और अर्थशास्त्री से शुरू होकर बिहार के शीर्ष नेता तक पहुंची। बिहार विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले जगन्नाथ मिश्रा ने 1960 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय लिया।

उनके बड़े भाई ललित नारायण मिश्रा ने उन्हें राजनीति में प्रवेश के लिए प्रेरित किया। 1975 में बम विस्फोट में ललित नारायण की हत्या ने जगन्नाथ मिश्रा को गहरा आघात पहुंचाया, लेकिन इस त्रासदी ने उन्हें और मजबूत बना दिया।

1975 में पहली बार मुख्यमंत्री बने जगन्नाथ मिश्रा उस समय देश के सबसे युवा मुख्यमंत्रियों में से एक थे। मात्र 38 वर्ष की आयु में उन्होंने बिहार की बागडोर संभाली। उनके कार्यकाल में शिक्षा और ग्रामीण विकास पर विशेष ध्यान दिया गया। बिहार विश्वविद्यालय में सुधार और सामाजिक कल्याण की योजनाओं ने उनकी लोकप्रियता में वृद्धि की। उनकी सादगी और जनता से सीधा जुड़ाव उन्हें जननायक बनाता था।

मिथिलांचल से ताल्लुक रखने वाले जगन्नाथ मिश्रा ने मैथिली कला, साहित्य और परंपराओं को बढ़ावा दिया, जिससे उन्हें क्षेत्रीय समुदाय में गहरा सम्मान मिला।

उनका एक ऐतिहासिक निर्णय था उर्दू को बिहार की दूसरी राजभाषा का दर्जा देना। 1980 के दशक में इस कदम ने अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर मुस्लिम समुदाय का दिल जीत लिया था।

दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिलों में इस फैसले ने कांग्रेस की लोकप्रियता को नई ऊंचाइयां दीं। वहीं, मिथिलांचल में विवाद खड़ा हो गया। मैथिली भाषा को संवैधानिक मान्यता की मांग कर रहे मैथिल ब्राह्मणों ने इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान पर हमला माना। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, एबीवीपी और बीजेपी ने इस फैसले का तीखा विरोध किया, जिसमें प्रदर्शन और पुतला दहन शामिल थे। उन पर वोट बैंक की राजनीति और तुष्टिकरण के आरोप लगे।

जगन्नाथ मिश्रा की सियासी यात्रा विवादों से भी घिरी रही। 1990 के दशक में चारा घोटाले ने बिहार की राजनीति को हिलाकर रख दिया। 2013 में मिश्रा को इस मामले में दोषी ठहराया गया और चार साल की सजा के साथ दो लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया। इसने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया, हालांकि उनके समर्थकों का मानना था कि वह सियासी साजिश का शिकार हुए। जगन्नाथ मिश्रा ने हमेशा अपनी बेगुनाही का दावा किया और बिहार के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।

19 अगस्त 2019 को लंबी बीमारी (कैंसर) के बाद दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव बलुआ (सुपौल) में राजकीय सम्मान के साथ किया गया। बिहार सरकार ने तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की थी।

Point of View

NationPress
18/08/2025

Frequently Asked Questions

जगन्नाथ मिश्रा कौन थे?
पंडित जगन्नाथ मिश्रा बिहार के प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिन्होंने शिक्षा और ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उनका सबसे बड़ा निर्णय क्या था?
उर्दू को बिहार की दूसरी राजभाषा का दर्जा देना उनका ऐतिहासिक निर्णय था।
जगन्नाथ मिश्रा का निधन कब हुआ?
उनका निधन 19 अगस्त 2019 को हुआ।