क्या राहुल गांधी दिवंगत आईपीएस वाई पूरन कुमार के परिजनों से मिलेंगे?

सारांश
Key Takeaways
- राहुल गांधी दिवंगत आईपीएस वाई पूरन कुमार के परिवार से मिलेंगे।
- आत्महत्या का मामला जातीय अत्याचार का संकेत है।
- दलित समुदाय के खिलाफ बढ़ते अन्याय की चर्चा।
- कांग्रेस के नेताओं द्वारा इस मुद्दे की निंदा।
- सामाजिक समानता की आवश्यकता पर बल।
नई दिल्ली, १३ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कांग्रेस सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी मंगलवार को चंडीगढ़ में दिवंगत आईपीएस वाई पूरन कुमार के परिजनों से मिलकर उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करेंगे। कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस संबंध में एक पोस्ट साझा किया।
राहुल गांधी ने इस दुखद घटना पर गहरा शोक जताया था। उन्होंने एक्स पर लिखा था कि हरियाणा के आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार जी की आत्महत्या उस गहराते सामाजिक विष का प्रतीक है जो जाति के नाम पर इंसानियत को कुचल रहा है। जब एक आईपीएस अधिकारी को उसकी जाति के कारण अपमान और अत्याचार सहने पड़ते हैं, तो सोचिए, आम दलित नागरिक किन हालात में जी रहा होगा।
उन्होंने कहा कि रायबरेली में हरिओम वाल्मीकि की हत्या, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का अपमान और अब पूरन जी की मृत्यु, ये घटनाएं दिखाती हैं कि वंचित वर्ग के खिलाफ अन्याय अपनी चरम सीमा पर है। भाजपा-आरएसएस की नफरत और मनुवादी सोच ने समाज को विष से भर दिया है।
दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुस्लिम आज न्याय की उम्मीद खोते जा रहे हैं। यह संघर्ष केवल पूरन जी का नहीं है; यह हर उस भारतीय का है जो संविधान, समानता और न्याय में विश्वास रखता है।
इसी बीच, कांग्रेस महासचिव और सांसद प्रियंका गांधी ने भी हरियाणा आईपीएस आत्महत्या मामले की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि जातीय प्रताड़ना से परेशान होकर हरियाणा के आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या से पूरा देश स्तब्ध है। देश भर में दलितों के खिलाफ जिस तरह अन्याय, अत्याचार, और हिंसा का सिलसिला चल रहा है, वह भयावह है।
उन्होंने कहा कि पहले रायबरेली में हरिओम वाल्मीकि जी की हत्या, फिर मुख्य न्यायाधीश का अपमान, और अब एक वरिष्ठ अधिकारी की आत्महत्या यह साबित करती है कि भाजपा राज दलितों के लिए अभिशाप बन गया है। चाहे कोई आम नागरिक हो या ऊंचे पद पर हो, अगर वह दलित समाज से है तो अन्याय और अमानवीयता उसका पीछा नहीं छोड़ते।
जब ऊंचे ओहदे पर बैठे दलितों का यह हाल है, तो सोचिए आम दलित समाज किन हालात में जी रहा होगा।