क्या श्रीराम मंदिर ध्वजारोहण में केसरिया ध्वज पर ‘ऊँ’ और सूर्य का राजवंशी वैभव है?
सारांश
Key Takeaways
- ध्वजारोहण ने अयोध्या की सांस्कृतिक धरोहर को नई पहचान दी है।
- केसरिया ध्वज भारतीय संस्कृति का अद्वितीय प्रतीक है।
- यह आयोजन राम राज्य की परिकल्पना को प्रदर्शित करता है।
अयोध्या, 18 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पर उठने वाला दिव्य केसरिया ध्वज तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री चंपत राय द्वारा राम राज्य की आदर्श परिकल्पना, समाज में निर्भय वातावरण के निर्माण, और 'राम सबके और सबके राम' की भावना का जीवंत प्रतीक बताया गया है।
उन्होंने बताया कि इस ध्वजारोहण का उद्देश्य परंपरा का पालन करने के साथ-साथ सनातन संस्कृति के उस विराट स्वरूप का स्मरण कराना है, जो राष्ट्र को एकजुट करता है।
चंपत राय ने कहा कि अयोध्या में होने वाले इस ऐतिहासिक आयोजन में लगभग तीन हजार आमंत्रित अतिथि अयोध्या जनपद से हैं, जबकि शेष अतिथि उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों से बुलाए गए हैं।
उन्होंने पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि यह कार्यक्रम अयोध्या की सांस्कृतिक धरोहर और भारतीय आस्था के वैश्विक प्रभाव का प्रतीक बनेगा। श्रीराम मंदिर का ध्वजारोहण धार्मिक आस्था के उत्सव के साथ-साथ भारतीय सांस्कृतिक परंपरा, राजवंशीय गौरव और सनातन मूल्यों का अद्वितीय संगम है। यह अयोध्या की धरती से पूरे राष्ट्र में एक नई प्रेरणा फैलाएगा।
उन्होंने ध्वज पर अंकित प्रतीकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि केसरिया रंग ज्वाला, प्रकाश, त्याग और तप का प्रतीक है। मंदिर के 161 फीट ऊंचे शिखर पर 30 फीट का बाहरी ध्वजदंड लगाया गया है, जिससे ध्वज कुल 191 फीट की ऊंचाई पर लहराएगा।
चंपत राय ने बताया कि केसरिया ध्वज पर अंकित सूर्य प्रभु श्रीराम के सूर्यवंश का प्रतीक है, जबकि 'ऊँ' परमात्मा का प्रथम नामाक्षर है, जो चेतना और शाश्वत सत्य का प्रतिनिधित्व करता है।
ध्वज पर अंकित कोविदार वृक्ष के संबंध में उन्होंने कहा कि यह वृक्ष अयोध्या के राजवंशीय चिह्न के रूप में प्रतिष्ठित रहा है और इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण और हरिवंश पुराण में मिलता है। ज्ञानीजन इसे पारिजात और मंदार के संयोग से बना बताते हैं।
उन्होंने बताया कि मान्यता के अनुसार यह संसार का पहला हाइब्रिड पौधा था। परंपरा में वर्णित है कि इसी कोविदार वृक्ष पर चढ़कर लक्ष्मण ने भरत को सेना सहित वन की ओर आते देखा था।