क्या राम शरण शर्मा की 'प्राचीन भारत' ने इतिहास को नया मोड़ दिया?

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क्या राम शरण शर्मा की 'प्राचीन भारत' ने इतिहास को नया मोड़ दिया?

सारांश

राम शरण शर्मा, एक प्रख्यात इतिहासकार, जिनकी रचनाएं आज भी चर्चा का विषय हैं। उनकी पुस्तक 'प्राचीन भारत' पर विवाद और उनके विचारों ने न केवल इतिहास को प्रभावित किया, बल्कि समाज में भी गहरी छाप छोड़ी। जानें उनके योगदान और विवादों के बारे में।

Key Takeaways

  • राम शरण शर्मा ने प्राचीन भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • उनकी पुस्तक 'प्राचीन भारत' पर विवादों का विषय बनी।
  • उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इतिहास का अध्ययन किया।
  • उनकी रचनाएं आज भी शिक्षा में महत्वपूर्ण हैं।
  • उनका दृष्टिकोण समाज में गहरी छाप छोड़ गया।

नई दिल्ली, 19 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। इतिहासकार और शिक्षाविद् राम शरण शर्मा की याद में दो दशकों से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी एक घटना उनकी उदार सोच और जिज्ञासु स्वभाव की मिसाल बनी हुई है। यह घटना उनके जीवन से जुड़ा एक ऐसा किस्सा है, जब उनकी कलम की ताकत को पन्नों में कैद कर दिया गया।

राम शरण शर्मा एक बहुआयामी इतिहासकार थे। प्राचीन भारतीय इतिहास के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक पर उनकी गहरी पकड़ थी। उन्होंने समाज को हकीकत से अवगत कराया, लेकिन कई रचनाओं के लिए उन पर प्रतिबंध भी लगाया गया।

राम शरण शर्मा ने 100 से अधिक पुस्तकें और मोनोग्राफ लिखे, जिनका अनुवाद दुनिया भर की एक दर्जन भाषाओं में किया गया है। उनमें से उनकी 1977 की पुस्तक 'प्राचीन भारत' विवादों में रही।

उस समय देश में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता सरकार थी। 1977 में प्रकाशित इस पुस्तक पर विवाद इतना गहरा था कि अगले वर्ष 1978 में उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस किताब में महाभारत में कृष्ण की ऐतिहासिक भूमिका पर राम शरण शर्मा के विचार थे, जो विवाद का कारण बने।

उन्होंने अयोध्या विवाद पर भी बहुत कुछ लिखा, जिससे देशभर में बहस छिड़ गई थी।

'आर. एस. शर्मा: एक प्रखर इतिहासकार की विरासत' को याद करते हुए शिवाकांत तिवारी ने 'रिसर्च इंडिया पब्लिकेशन' की किताब में लिखा, "राम शरण शर्मा ने कभी भी धार्मिक मान्यताओं को ऐतिहासिक प्रमाणों के बिना स्वीकार नहीं किया। उनकी पुस्तक 'प्राचीन भारत' (1977) को 1978 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। उन्होंने इसके बचाव में 'इन डिफेंस ऑफ एंशिएंट इंडिया' (1979) लिखी।"

शिवाकांत तिवारी ने आगे लिखा, "आर्य विवाद पर उन्होंने स्पष्ट मत रखा कि आर्य बाहर से आए थे और उनका हड़प्पा सभ्यता से कोई संबंध नहीं था। इस पर भी तीखी प्रतिक्रियाएं और बहसें हुईं, लेकिन वे हमेशा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ऐतिहासिक साक्ष्य के आधार पर खड़े रहे।"

राम शरण शर्मा एक मार्क्सवादी दृष्टिकोण के इतिहासकार थे, जिन्होंने 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' के सिद्धांत को प्राचीन भारत के अध्ययन में अपनाया। उन्होंने अपनी लेखनी में इतिहास के विभिन्न पहलुओं को छुआ है, जैसे कि 'आर्य एवं हड़प्पा संस्कृतियों की भिन्नता' और 'शूद्रों का प्राचीन इतिहास' से लेकर 'एप्लाइड साइंसेस एंड टेक्नोलॉजी' और 'अर्ली मेडीएवल इंडियन सोसाइटी: ए स्टडी इन फ्यूडलाइजेशन' आदि में विविधता दिखाई है।

प्राचीन इतिहास को समसामायिक घटनाओं से जोड़ने में उन्हें महारथ हासिल थी। उनकी लिखी प्राचीन इतिहास की पुस्तकें देश की उच्च शिक्षा में बेहद महत्वपूर्ण हैं।

उनके जीवनभर के योगदान के लिए उन्हें 'केम्प्वेल मेमोरियल गोल्ड मेडल सम्मान', 'हेमचंद रायचौधरी जन्मशताब्दी स्वर्ण पदक सम्मान', और 'डी लिट' जैसे सम्मानों से नवाजा गया। इस महान इतिहासकार और शिक्षाविद का 20 अगस्त 2011 को पटना में निधन हो गया।

Point of View

बल्कि उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर भी गहरी समझ प्रदान की। यह महत्वपूर्ण है कि हम उनके कार्यों को समझें और वर्तमान संदर्भ में मूल्यांकन करें।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

राम शरण शर्मा कौन थे?
राम शरण शर्मा एक प्रसिद्ध इतिहासकार और शिक्षाविद् थे, जिन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी।
'प्राचीन भारत' पुस्तक पर विवाद क्यों हुआ?
'प्राचीन भारत' पुस्तक में राम शरण शर्मा ने महाभारत में कृष्ण की ऐतिहासिक भूमिका पर अपने विचार प्रस्तुत किए थे, जिसके कारण यह विवाद में आई।
उन्हें कौन से पुरस्कार मिले?
उन्हें 'केम्प्वेल मेमोरियल गोल्ड मेडल', 'हेमचंद रायचौधरी जन्मशताब्दी स्वर्ण पदक' और 'डी लिट' जैसे कई पुरस्कार प्राप्त हुए।