क्या जीडीपी में गिरावट आने पर आरबीआई रेपो रेट में कटौती करेगा?

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क्या जीडीपी में गिरावट आने पर आरबीआई रेपो रेट में कटौती करेगा?

सारांश

क्या आप जानते हैं कि अगर जीडीपी आंकड़े उम्मीदों से कम आते हैं, तो आरबीआई दरों में कटौती कर सकता है? जानें इस रिपोर्ट में कि कैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था का असर भारत के वित्तीय भविष्य पर पड़ सकता है।

Key Takeaways

  • यदि जीडीपी आंकड़े कमजोर रहे, तो आरबीआई रेपो रेट में कटौती कर सकता है।
  • अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में कटौती का असर भारत पर भी पड़ सकता है।
  • विकास दर में कमी से सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल सीमित रह सकता है।
  • आरबीआई ने हाल ही में दरों में कटौती के प्रभाव को देखने का निर्णय लिया है।
  • 2-4 वर्ष की मैच्योरिटी अवधि वाले कॉर्पोरेट बॉंड का स्प्रेड अनुकूल है।

नई दिल्ली, 14 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। यदि आगामी जीडीपी आंकड़े अपेक्षाओं से कम आते हैं और अमेरिकी फेडरल रिजर्व कमजोर श्रम बाजार के चलते दरों में अग्रसार ढील देना शुरू करता है, तो भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) नीतिगत दरों में कटौती पर विचार कर सकती है। यह जानकारी एक नई रिपोर्ट में दी गई है।

एचएसबीसी म्यूचुअल फंड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यदि विकास दर कमजोर रहती है और अमेरिकी फेड श्रम बाजार की कमजोरी का सामना करने के लिए दरों में कटौती करता है, तो ढील की कोई और संभावना बन सकती है।

अपनी हालिया नीति बैठक में, एमपीसी ने वित्त वर्ष 26 के लिए जीडीपी वृद्धि के अनुमान को 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा, जबकि तिमाही अनुमान पहली तिमाही में 6.5 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.7 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

रिपोर्ट के अनुसार, जब तक ऐसे संकेत नहीं मिलते, सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल सीमित दायरे में रहने की उम्मीद है, जिसमें लिक्विडिटी की स्थिति मुख्य कारक होगी।

आरबीआई की समिति ने रेपो दर को 5.50 प्रतिशत पर स्थिर रखा और कुल 100 आधार अंकों की पूर्व कटौती के बाद तटस्थ रुख बनाए रखा।

रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई ने हाल ही में दरों में की गई कटौती के प्रभाव को सामने आने के लिए समय देने का निर्णय लिया है, जबकि यह स्वीकार किया गया है कि वैश्विक अनिश्चितताएं और टैरिफ-संबंधी जोखिम विकास पर भारी पड़ सकते हैं, हालांकि मुद्रास्फीति पर इनका प्रभाव सीमित रहने की उम्मीद है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई द्वारा प्रणाली में पर्याप्त लिक्विडिटी बनाए रखने की संभावना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पहले की दरों में कटौती का लाभ पूरी तरह से पहुंचाया जा सके, जबकि अगले महीने निर्धारित नकद आरक्षित अनुपात में कटौती से उधारी लागत में कमी आने की उम्मीद है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2-4 वर्ष की मैच्योरिटी अवधि वाले कॉर्पोरेट बॉंड वर्तमान में भारतीय सरकारी बॉंड की तुलना में 65-75 आधार अंकों का अनुकूल स्प्रेड प्रदान कर रहे हैं और आगे चलकर स्प्रेड में कमी देखी जा सकती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सितंबर से अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में संभावित कटौती से आरबीआई को कार्रवाई करने के लिए अधिक गुंजाइश मिल सकती है, खासकर तब जब मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2026 की चौथी तिमाही तक स्थिर रहने का अनुमान है।

रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि एमपीसी कैलेंडर वर्ष 2025 के अंत तक एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाएगा, जिसमें भारत की विकास गति मुख्य फोकस बनी रहेगी।

Point of View

यह कहना उचित है कि मौद्रिक नीतियों में बदलाव का सीधा असर आम जनजीवन पर पड़ता है। हमें आशा है कि आरबीआई ऐसे निर्णय लेगा जो देश की आर्थिक स्थिरता को बनाए रखे और विकास को बढ़ावा दे।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

आरबीआई रेपो रेट में कटौती क्यों कर सकता है?
यदि जीडीपी आंकड़े उम्मीद से कम आते हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था में दबाव बढ़ता है, तो आरबीआई दरों में कटौती करके विकास को प्रोत्साहित कर सकता है।
क्या यह कटौती आम लोगों पर असर डालेगी?
हाँ, रेपो रेट में कटौती से बैंक द्वारा दिए जाने वाले लोन की दरें भी कम हो सकती हैं, जिससे आम लोग कम ब्याज पर लोन ले सकेंगे।