क्या माताएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए जितिया व्रत करती हैं? जानें कथा और महत्व

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क्या माताएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए जितिया व्रत करती हैं? जानें कथा और महत्व

सारांश

जितिया व्रत, जो माताओं द्वारा संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है, एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। यह व्रत न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि मां और संतान के रिश्ते में गहराई भी लाता है। जानिए इस व्रत की कथा और इसका महत्व।

Key Takeaways

  • जितिया व्रत माताओं द्वारा संतान के लिए किया जाता है।
  • यह व्रत निर्जला उपवास के साथ मनाया जाता है।
  • इस व्रत का पौराणिक महत्व है।
  • पूजा के दौरान जीमूतवाहन देवता की पूजा की जाती है।
  • यह व्रत मातृत्व के प्रतीक के रूप में माना जाता है।

नई दिल्ली, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू धर्म में जितिया व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक समझा जाता है। यह व्रत केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि मां और संतान के रिश्ते में समर्पण और तपस्या की भावना को भी दर्शाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के कई क्षेत्रों में इसे ममता के सबसे बड़े प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इसे जीवित्पुत्रिका या जीउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य के लिए निर्जला उपवास करती हैं।

हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत आयोजित किया जाता है। इस बार यह व्रत रविवार सुबह 7:23 बजे शुरू होकर सोमवार तड़के 3:06 बजे तक रहेगा। खास बात यह है कि इस बार जितिया व्रत का संयोग रोहिणी नक्षत्र, सिद्धि योग और रवि योग के साथ बना है, जो इसे और अधिक फलदायी बनाता है।

चंद्रमा वृषभ राशि में दिनभर स्थित रहेंगे और चंद्रोदय रात्रि 11:18 बजे होगा, जिससे रात्रिकालीन पूजा का विशेष महत्व बढ़ जाता है।

व्रत में महिलाएं पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए रहती हैं और शाम को मिट्टी या गोबर से बनाए गए जीमूतवाहन देवता और जितिया माता की पूजा करती हैं। जीमूतवाहन वही पौराणिक पात्र हैं, जिन्होंने एक नाग बालक की रक्षा के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की थी। पूजा के साथ जितिया व्रत कथा का पाठ किया जाता है, जो इस व्रत में अनिवार्य होता है।

सोमवार को नवमी तिथि में व्रत का पारण किया जाएगा। इस व्रत में पारंपरिक रूप से नोनी साग, मडुआ रोटी और पंचसब्जी जैसे व्यंजन बनाए जाते हैं। व्रती महिलाएं पूजा और कथा के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जंगल में रहने वाली चील और सियारिन ने यह व्रत रखने का संकल्प लिया। चील ने पूरे नियमों से व्रत निभाया, लेकिन सियारिन भूख से तंग आकर रात को मांस खा बैठी।

अगले जन्म में चील एक मंत्री की बेटी बनी और सियारिन राजकुमारी, परंतु चील के बच्चे स्वस्थ और दीर्घायु हुए, जबकि सियारिन की संतानें जन्म लेते ही मर जाती थीं। जब सियारिन को अपने पूर्वजन्म की गलती का अहसास हुआ, तो उसने फिर से पूरी निष्ठा से जितिया व्रत किया और उसे भी स्वस्थ संतान का सुख मिला।

Point of View

जिसका उद्देश्य माताओं द्वारा संतान के स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करना है। यह परंपरा भारतीय संस्कृति में गहरे से जुड़ी हुई है और इसे विभिन्न क्षेत्रों में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह व्रत मातृत्व के प्रतीक के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है।
NationPress
14/09/2025

Frequently Asked Questions

जितिया व्रत कब मनाया जाता है?
यह व्रत हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
जितिया व्रत का महत्व क्या है?
यह व्रत माताओं द्वारा संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है।
इस व्रत में क्या विशेष पूजा की जाती है?
इस व्रत में महिलाएं जीमूतवाहन देवता और जितिया माता की पूजा करती हैं।
क्या इस व्रत में उपवास रखना होता है?
हाँ, माताएं इस दिन निर्जला उपवास रखती हैं।
क्या जितिया व्रत की कोई पौराणिक कथा है?
हाँ, इस व्रत की पौराणिक कथा चील और सियारिन की कहानी से जुड़ी हुई है।