क्या दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच ने फर्जी वीजा अपॉइंटमेंट रैकेट का भंडाफोड़ किया?

सारांश
Key Takeaways
- दिल्ली पुलिस ने एक संगठित ठगी रैकेट का भंडाफोड़ किया।
- आरोपियों ने फर्जी दस्तावेज तैयार किए थे।
- पीड़ितों से पैसे वसूलने का सुनियोजित तरीका अपनाया गया।
- पुलिस ने तकनीकी साक्ष्य के आधार पर कार्रवाई की।
- जागरूकता फैलाना आवश्यक है ताकि लोग इस तरह की ठगी से बच सकें।
नई दिल्ली, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली पुलिस की सेंट्रल रेंज, क्राइम ब्रांच ने एक बड़ा फर्जी वीजा अपॉइंटमेंट रैकेट उजागर किया है। इस ऑपरेशन के तहत पुलिस ने तीन संदिग्धों, दीपक पांडे, यश सिंह और वसीम अकराम को गिरफ्तार किया है।
आरोपी खुद को वीजा कंसल्टेंट और वीएफएस ग्लोबल के कर्मचारी बताकर लोगों को धोखा देते थे। पुलिस ने उनके पास से जालसाजी में इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन, लैपटॉप, बैंक खाता रिकॉर्ड और फर्जी दस्तावेज बनाने के उपकरण भी बरामद किए।
यह मामला तब सामने आया जब वीएफएस ग्लोबल के कंसल्टेंट आनंद सिंह ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उनकी शिकायत में कहा गया कि कुछ लोग वीएफएस ग्लोबल का नाम और लोगो का इस्तेमाल कर लोगों से पैसे ले रहे हैं।
पुलिस की जांच में पता चला कि आरोपियों ने 2021 में पैरामाउंटओवरसीज नाम से एक डोमेन खरीदा था। इसे नेहरू प्लेस और जनकपुरी पते से जोड़कर विश्वसनीयता का दिखावा किया गया। आरोपियों ने फर्जी सोशल मीडिया प्रोफाइल और विज्ञापन बनाए, जिनमें वीएफएस ग्लोबल का लोगो इस्तेमाल किया गया।
गैंग पीड़ितों से व्हाट्सएप (यूएसए नंबर के जरिए) और फर्जी ईमेल आईडी के माध्यम से संपर्क करता था।
इनका ठगी करने का तरीका बेहद सुनियोजित था। पहले चरण में गैंग पीड़ितों से व्हाट्सएप के जरिए संपर्क करता और उन्हें डॉक्यूमेंट चेकलिस्ट भेजता था। विश्वास जीतने के लिए मेडिकल टेस्ट फीस के नाम पर पैसे वसूले जाते और वैध लैब में अपॉइंटमेंट भी दिलाए जाते। दूसरे चरण में पीड़ितों से वीजा विवरण लेकर फर्जी वर्क वीजा एप्लिकेशन, ऑफर लेटर और जॉब कन्फर्मेशन लेटर भेजे जाते, जिसके एवज में और अधिक रकम वसूली जाती।
तीसरे चरण में धोखाधड़ी को और बढ़ाने के लिए गैंग फर्जी आईसीए (इमिग्रेशन एंड चेकप्वाइंट अथॉरिटी) लेटर, पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट और फॉर्म-16 जैसे दस्तावेज भेजकर पीड़ितों से अतिरिक्त पैसे ऐंठता था। इस प्रकार, यह गैंग विश्वास का फायदा उठाकर और जाली दस्तावेजों का सहारा लेकर ठगी को अंजाम देता था।
इस मामले में क्राइम ब्रांच ने एफआईआर संख्या 201/2025 धारा 318(4)/319(2)/61 बीएनएस एक्ट के तहत केस दर्ज किया। इंस्पेक्टर सुनील कलखंडे के नेतृत्व और एसीपी राजबीर मलिक व डीसीपी विक्रम सिंह के निर्देशन में टीम ने साइबर फॉरेंसिक विश्लेषण किया। ईमेल आईडी, नकली सिम कार्ड, आईपी एड्रेस और बैंक ट्रांजैक्शन रिकॉर्ड खंगालने के बाद पुलिस ने जामरुदपुर स्थित आरोपियों का ऑफिस पहचान लिया।
9 सितंबर को छापेमारी में मास्टरमाइंड दीपक पांडे और उसके साथी यश सिंह व वसीम अकराम को गिरफ्तार किया गया। मौके से कई लैपटॉप, मोबाइल, बैंक रिकॉर्ड और फर्जी दस्तावेज बनाने वाले सॉफ्टवेयर बरामद हुए। जांच में खुलासा हुआ कि आरोपियों ने केवल एक पीड़ित से ही 3.16 लाख रुपए वसूले थे।
इस मामले में आरोपियों की भूमिका भी स्पष्ट थी। दीपक पांडे पीड़ितों से सीधे संपर्क स्थापित करता था, जबकि यश सिंह फर्जी दस्तावेज तैयार करने में माहिर था। वसीम अकराम फर्जी पीसीसी फॉर्म और फॉर्म-16 जैसे दस्तावेज तैयार करता था।
क्राइम ब्रांच ने कहा कि तीनों आरोपियों का गिरोह संगठित तरीके से वीएफएस ग्लोबल का नाम और ब्रांडिंग का दुरुपयोग कर रहा था। आरोपियों से बरामद डिजिटल साक्ष्य, बैंक रिकॉर्ड और पीड़ितों के बयान से मामला पुख्ता हुआ है। फिलहाल पुलिस यह जांच कर रही है कि क्या इस गिरोह से और लोग जुड़े हैं और ठगी गई रकम का उपयोग कहां किया गया।