क्या सावन गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा से मिलेगी सफलता और समृद्धि?
 
                                सारांश
Key Takeaways
- श्रावण मास का गुरुवार बृहस्पति की पूजा के लिए खास है।
- आडल योग के दौरान शुभ कार्य करने से बचें।
- पीले रंग के वस्त्र और फल दान करने से लाभ होता है।
- भगवान विष्णु को हल्दी चढ़ाने से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
- स्नान के बाद मंदिर या पूजा स्थल को शुद्ध करना जरूरी है।
नई दिल्ली, 30 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी गुरुवार को है। इस दिन आडल योग भी बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह एक अशुभ योग है, जिसमें शुभ कार्यों को करने से बचना चाहिए।
दृक पंचांग के अनुसार, इस दिन का अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजे से 12 बजकर 54 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय 02 बजकर 09 मिनट से 3 बजकर 50 मिनट तक होगा।
आडल योग, ज्योतिष में एक अशुभ योग माना जाता है। इससे पहले ऐसा योग नवरात्रि के पहले दिन साल 2022 में हुआ था। इस दिन शुभ कार्य करने से बचना चाहिए, लेकिन बृहस्पतिदेव की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और सफलता के द्वार खुलते हैं। बृहस्पति की पूजा के साथ उनका व्रत रखना भी श्रेष्ठ माना जाता है।
अग्नि पुराण में उल्लेखित है कि इस दिन भगवान विष्णु ने काशी में शिवलिंग की स्थापना की थी, जिससे गुरुवार के दिन भगवान बृहस्पति की पूजा का महत्व और बढ़ जाता है। अग्नि और स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन व्रत रखने से धन, समृद्धि, संतान और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
व्रत रखने के लिए इस दिन पीले वस्त्र पहनने तथा पीले फल और पीले फूलों का दान करने से भी लाभ मिलता है।
गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को हल्दी चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, इस दिन विद्या की पूजा करने से ज्ञान में वृद्धि होती है। इस दिन किसी गरीब या जरूरतमंद को अन्न और धन का दान करने से भी पुण्य मिलता है। इस व्रत को किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार से आरंभ कर सकते हैं और 16 गुरुवार तक व्रत रखकर उद्यापन कर सकते हैं।
मान्यता है कि केले के पत्ते में भगवान विष्णु का वास होता है। इसलिए गुरुवार के दिन केले के पत्ते की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत आरंभ करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर पूजा सामग्री रखें, फिर भगवान विष्णु का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें। इसके बाद केले के वृक्ष की जड़ में चने की दाल, गुड़ और मुनक्का चढ़ाकर भगवान विष्णु की पूजा करें। दीपक जलाएं और कथा सुनें और भगवान बृहस्पति की आरती करें। उसके बाद आरती का आचमन करें। इस दिन पीले रंग के खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
 
                     
                                             
                                             
                                             
                                            