क्या सावन विशेष में हरी चूड़ी, साड़ी और श्रृंगार से महादेव के प्रिय मास का है कनेक्शन?

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क्या सावन विशेष में हरी चूड़ी, साड़ी और श्रृंगार से महादेव के प्रिय मास का है कनेक्शन?

सारांश

सावन का महीना न केवल भगवान शिव की भक्ति का समय है, बल्कि महिलाओं के हरे रंग के श्रृंगार का भी। जानें, हरे रंग का इस मास में क्या महत्व है और कैसे यह भगवान शिव और माता पार्वती के प्रेम को दर्शाता है।

Key Takeaways

  • सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय है।
  • हरे रंग का श्रृंगार मातृ शक्ति और प्रेम का प्रतीक है।
  • सावन में जल चढ़ाने की परंपरा का महत्व है।
  • हरे रंग के वस्त्र बुध ग्रह से जुड़ते हैं।
  • हरी चूड़ियां और मेहंदी सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती हैं।

नई दिल्ली, 2 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भोलेनाथ का प्रिय महीना सावन 11 जुलाई से शुरू होने वाला है। इस मास में न केवल प्रकृति हरे रंग की चादर ओढ़ती है, बल्कि परंपराओं के अनुसार महिलाएं भी अपने श्रृंगार में हरे रंग को शामिल करती हैं, चाहे वह चूड़ी हो, साड़ी, बिंदी या अन्य श्रृंगार प्रसाधन। हरे रंग का विशेष महत्व है और इस मास से इसका गहरा संबंध भी है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन में महिलाएं हरे रंग को अपने श्रृंगार का अभिन्न हिस्सा बनाती हैं। चाहे हरी चूड़ियां हों, साड़ी हो, बिंदी हो या मेहंदी। इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है।

धार्मिक ग्रंथों में सावन को भगवान शिव का प्रिय महीना माना गया है। ग्रंथों के अनुसार, सावन में समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला, तो भोलेनाथ ने इसे अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। इस दौरान प्रकृति ने हरियाली की चादर ओढ़कर शिव की भक्ति में तप किया और देवी-देवताओं ने उन पर जल अर्पित किया। तभी से सावन में जल चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हुई।

हरा रंग प्रकृति, जीवन और समृद्धि का प्रतीक है, जो भगवान शिव के सृजन और संहार के स्वरूप को दर्शाता है। शिव को बेल पत्र और धतूरा चढ़ाने की परंपरा भी हरे रंग से जुड़ी है, क्योंकि बिल्व पत्र की हरियाली शीतलता और शांति का प्रतीक मानी जाती है। काशी के ज्योतिषाचार्य बलभद्र तिवारी बताते हैं कि हरा रंग माता पार्वती के साथ ही भोलेनाथ को भी प्रिय है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हरे रंग का संबंध बुध ग्रह से है। हरे रंग के वस्त्र धारण करने से बुध प्रसन्न होते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन में हरा रंग भगवान शिव और माता पार्वती के प्रेम का भी प्रतीक है। माता पार्वती, जिन्हें प्रकृति का स्वरूप माना जाता है, वह हरे रंग के वस्त्र और श्रृंगार में सजी-धजी शिव को प्रसन्न करती हैं। यही कारण है कि सावन में सुहागिनें हरे रंग के वस्त्र और श्रृंगार अपनाकर माता पार्वती की भक्ति और अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

सावन में महिलाओं का हरे रंग को अपनाना केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विश्वास का हिस्सा है।

हरी चूड़ियां, साड़ी और मेहंदी न केवल सुहाग की निशानी हैं, बल्कि ये शिव-पार्वती के अटूट प्रेम को भी दर्शाते हैं। हरे रंग की चूड़ियां सुहागिनों के लिए सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती हैं, जबकि मेहंदी का गहरा हरा रंग प्रेम और भक्ति की गहराई को व्यक्त करता है। सावन में हरियाली तीज और हरियाली अमावस्या जैसे पर्व भी हरे रंग की महिमा को बढ़ाते हैं और महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। इन अवसरों पर महिलाएं हरे रंग के परिधान पहनकर झूले झूलती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा करती हैं। यह परंपरा न केवल सौंदर्य को बढ़ाता है, बल्कि आत्मिक शांति और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना को भी पूरा करती है।

Point of View

बल्कि महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जहाँ वे अपने श्रृंगार के माध्यम से अपनी भावनाओं का इज़हार करती हैं। इस प्रकार, सावन का हरियाली से जुड़ाव न केवल सौंदर्य को बढ़ाता है बल्कि आध्यात्मिकता का भी अहसास कराता है।
NationPress
20/07/2025

Frequently Asked Questions

सावन में महिलाएं हरे रंग का श्रृंगार क्यों करती हैं?
महिलाएं सावन में हरे रंग का श्रृंगार करती हैं क्योंकि यह भगवान शिव और माता पार्वती के प्रेम का प्रतीक है, और इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।
हरे रंग का सावन से क्या संबंध है?
हरे रंग को प्रकृति, जीवन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, जो सावन में प्रकृति के हरियाली से जुड़ा होता है।
क्या हरी चूड़ियां केवल सौभाग्य का प्रतीक हैं?
जी हाँ, हरी चूड़ियां सुहागिनों के लिए सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती हैं।
सावन में कौन से खास पर्व मनाए जाते हैं?
सावन में हरियाली तीज और हरियाली अमावस्या जैसे पर्व मनाए जाते हैं, जो हरे रंग की महिमा को बढ़ाते हैं।
क्या सावन का महीना केवल धार्मिक है?
सावन का महीना धार्मिक होने के साथ-साथ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विश्वास का भी प्रतीक है।