महादेव के गले में नागदेव क्यों विराजमान हैं? जानिए सावन विशेष में

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महादेव के गले में नागदेव क्यों विराजमान हैं? जानिए सावन विशेष में

सारांश

सावन का पवित्र महीना 11 जुलाई से शुरू हो रहा है। इस दौरान महादेव के स्वरूप और उनके श्रृंगार का रहस्य जानना रोचक है। क्यों उनके शरीर पर भस्म, माथे पर चंद्रमा, जटा में गंगा और गले में नागदेव हैं? जानें इस विशेष में।

Key Takeaways

  • महादेव का स्वरूप अद्भुत है।
  • उनके शरीर पर भस्म का महत्व है।
  • चंद्रमा उनके माथे पर विराजमान है।
  • गंगा उनकी जटाओं में बंधी है।
  • नागराज वासुकी उनके गले में हैं।

नई दिल्ली, 5 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। महादेव को समर्पित सावन का पवित्र महीना 11 जुलाई से आरंभ होने वाला है। महादेव के साथ ही उनके भक्तों के लिए यह महीना अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिवालयों में लंबी कतारें 'बोल बम' और 'हर हर महादेव' के उद्घोष से गूंज उठेंगी। भोलेनाथ का स्वरूप अद्भुत है। उनका रूप जितना रहस्यमय है, उतना ही आकर्षक भी। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि उनके शरीर पर भस्म, माथे पर चंद्रमा, जटा में गंगा, और गले में नागदेव क्यों स्थित हैं?

शरीर पर भस्म, माथे पर चंद्रमा, जटा में गंगा और गले में नागदेव—हर भक्त के मन में जिज्ञासा पैदा करता है। पौराणिक ग्रंथों में इन सवालों का सरल उत्तर उपलब्ध है, जो भोलेनाथ के स्वरूप और श्रृंगार के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

महादेव को 'भस्मभूषित' भी कहा जाता है, क्योंकि वे अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। शिव पुराण के अनुसार, भोलेनाथ को भस्म अत्यधिक प्रिय है। यह वैराग्य और नश्वरता का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि यह संसार क्षणभंगुर है और आत्मा ही शाश्वत है। शिव का यह संदेश है कि सांसारिक मोह को त्यागकर आत्मिक शांति की ओर बढ़ना चाहिए। इतना ही नहीं, भस्म में औषधीय गुण भी माने जाते हैं, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता सती ने क्रोध में आकर अपने आप को अग्नि में समर्पित किया, तब महादेव ने उनके शव को लेकर धरती से आकाश तक भ्रमण किया। विष्णु जी ने उनकी यह दशा देखी और माता सती के शव को छूकर भस्म में बदल दिया। शिव जी ने अपने हाथों में भस्म देखकर और परेशान हो गए और अपनी याद में वह राख अपने शरीर पर मल ली।

धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते थे, जहाँ ठंड का सामना करने के लिए वे शरीर पर भस्म लगाते थे।

'भस्मभूषित' के साथ ही शिव को 'चंद्रशेखर' भी कहा जाता है, क्योंकि उनके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है। भागवत पुराण के अनुसार, जब चंद्रमा ने दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों (नक्षत्रों) से विवाह किया, लेकिन केवल रोहिणी को प्राथमिकता दी, तो दक्ष ने उन्हें क्षय रोग का श्राप दे दिया। इसके बाद चंद्रमा ने शिव की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अपने मस्तक पर रहने का वरदान दिया।

महादेव की जटाओं में गंगा का निवास है, इसलिए उन्हें 'गंगाधर' कहा जाता है। हरिवंश पुराण के अनुसार, जब पवित्रता और मुक्ति की दात्री गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं, तो उनकी प्रचंड धारा को संभालने के लिए शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में बांध लिया।

औढरदानी को 'नागेंद्रहार' भी कहा जाता है, क्योंकि उनके गले में नागराज वासुकी विराजमान हैं। शिव पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन में वासुकी ने रस्सी बनकर शिव के प्रति अपनी भक्ति दिखाई थी। प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अपने गले में स्थान दिया और नागलोक का राजा बना दिया।

Point of View

NationPress
21/07/2025

Frequently Asked Questions

महादेव के शरीर पर भस्म क्यों होती है?
महादेव को भस्म प्रिय है, यह वैराग्य और नश्वरता का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि आत्मा ही शाश्वत है।
चंद्रमा महादेव के माथे पर क्यों है?
चंद्रमा ने दक्ष प्रजापति की पुत्रियों से विवाह के बाद शिव की तपस्या की, जिससे शिव ने उन्हें अपने माथे पर स्थान दिया।
महादेव की जटाओं में गंगा क्यों है?
गंगा को धरती पर अवतरित करने के लिए शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में बांध लिया।
नागराज वासुकी का महादेव के गले में क्या महत्व है?
वासुकी ने समुद्र मंथन में शिव के प्रति भक्ति दिखाते हुए उन्हें अपने गले में स्थान दिया।
सावन का महत्त्व क्या है?
सावन का महीना महादेव की पूजा का विशेष समय है, जब भक्त उनकी भक्ति में लीन रहते हैं।