क्या शरतचंद्र चट्टोपाध्याय भारतीय साहित्य में यथार्थ की अमर आवाज हैं?

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क्या शरतचंद्र चट्टोपाध्याय भारतीय साहित्य में यथार्थ की अमर आवाज हैं?

सारांश

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, जिनकी रचनाएँ बांग्ला साहित्य में यथार्थवाद की नई परिभाषा स्थापित करती हैं, ने समाज के गहरे मुद्दों को अपनी लेखनी में उतारा। उनके उपन्यास 'देवदास', 'परिणीता', और 'श्रीकांत' आज भी पाठकों को प्रेरित करते हैं। जानें उनके जीवन और काम के बारे में।

Key Takeaways

  • शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का साहित्य यथार्थवाद की नई ऊँचाइयों को छूता है।
  • उनकी रचनाएँ सामाजिक मुद्दों पर गहरा प्रकाश डालती हैं।
  • महिलाओं की पीड़ा और सामाजिक कुरीतियों को उजागर करने में उनकी लेखनी अद्वितीय है।
  • उनकी कला आज भी सिनेमा और थिएटर को प्रेरित करती है।
  • शरतचंद्र का योगदान भारतीय साहित्य में अमूल्य है।

नई दिल्ली, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय भारतीय साहित्य के उन अद्वितीय सितारों में से एक हैं, जिन्होंने बांग्ला साहित्य को यथार्थवाद की नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। 15 सितंबर 1876 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के देवानंदपुर में जन्मे इस उपन्यासकार ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की गहराइयों को छुआ। 'देवदास', 'परिणीता' और 'श्रीकांत' जैसे कालजयी उपन्यासों के रचयिता शरत चंद्र ने महिलाओं की पीड़ा, सामाजिक कुरीतियों और मानवीय भावनाओं को अपनी लेखनी में बखूबी उतारा।

वे अपने माता-पिता मोतीलाल चट्टोपाध्याय और भुवनमोहिनी देवी की नौ संतानों में से एक थे। गरीबी और पारिवारिक संघर्षों के बीच पले-बढ़े शरतचंद्र, बचपन से ही साहित्य की ओर आकर्षित हो गए।

रवींद्रनाथ टैगोर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की रचनाओं से प्रेरित होकर उन्होंने कम उम्र में ही लेखन की शुरुआत की। शरतचंद्र का प्रारंभिक जीवन घुमक्कड़ था। 1894 में उन्होंने एंट्रेंस परीक्षा पास की, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उच्च शिक्षा पूरी नहीं कर सके। 1896 से 1899 तक वे भागलपुर में रहे, जहाँ उन्होंने साहित्य सभा का संचालन किया। 1903 में वे बर्मा (अब म्यांमार) चले गए, जहाँ एक क्लर्क के रूप में काम करते हुए उन्होंने कई रचनाएँ लिखीं।

बर्मा से लौटने पर 1907 में उनकी पहली रचना 'बड़ी दीदी' (महेश्वरी दीदी) बिना बताए 'भारती' पत्रिका में प्रकाशित हुई, जो रातोंरात हिट हो गई। इस सफलता ने उन्हें साहित्य जगत में स्थापित कर दिया।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की रचनाओं का मूल आधार ग्रामीण बंगाल की जीवनशैली, महिलाओं की दयनीय स्थिति, सामाजिक कुरीतियां और मानवीय संघर्ष थे। वे यथार्थवाद के प्रणेता थे, जो आदर्शवाद से हटकर वास्तविकता को चित्रित करते थे।

उनके प्रमुख उपन्यासों में 'देवदास' (1917), जो प्रेम और वियोग की कालजयी कहानी है, 'परिणीता' (1914), जो बाल विवाह और प्रेम त्रिकोण पर आधारित है और 'श्रीकांत' (1917-1933) शामिल हैं, जो एक अनाथ युवक की जीवन यात्रा को दर्शाता है।

उनकी उल्लेखनीय कृति 'पाथेर दाबी' (1926) बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन पर आधारित थी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया। उनकी कहानियाँ जैसे 'बिन्ना', 'मामलार फल' और 'अभागी का स्वर्ग' महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक सुधार पर केंद्रित हैं।

शरतचंद्र की रचनाएँ न केवल बांग्ला में, बल्कि हिंदी, तमिल, तेलुगु जैसी भाषाओं में अनुदित होकर पूरे भारत में लोकप्रिय हुईं।

'देवदास' पर 1955 में दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म बनी, जबकि 2002 में शाहरुख़ ख़ान ने इसे जीवंत किया। 'परिणीता' पर 2005 में विद्या बालन और सैफ अली ख़ान की फिल्म आई। उनकी कृतियाँ आज भी सिनेमा, टीवी और थिएटर को प्रेरित करती हैं। वे महिलाओं के प्रति संवेदनशील थे और विधवा विवाह, छुआछूत जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई।

16 जनवरी 1938 को कलकत्ता में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी साहित्यिक विरासत अमर है।

Point of View

बल्कि वे सामाजिक मुद्दों को उजागर करने में भी सक्षम हैं। यह आवश्यक है कि हम उनकी विरासत को समझें और उसे आगे बढ़ाएँ, ताकि नई पीढ़ी भी उनके विचारों से प्रेरित हो सके।
NationPress
14/09/2025

Frequently Asked Questions

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय कौन थे?
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय एक प्रमुख बांग्ला लेखक थे, जिन्होंने यथार्थवाद को अपनी रचनाओं में प्रमुखता दी।
उनकी प्रमुख रचनाएँ कौन सी हैं?
उनकी प्रमुख रचनाएँ 'देवदास', 'परिणीता', और 'श्रीकांत' हैं।
शरतचंद्र का साहित्य में क्या योगदान है?
उनका साहित्य सामाजिक कुरीतियों और मानवीय भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है।
क्या उनकी रचनाएँ अन्य भाषाओं में अनुदित हैं?
हाँ, उनकी रचनाएँ हिंदी, तमिल, और तेलुगु जैसी भाषाओं में अनुदित हो चुकी हैं।
उनका निधन कब हुआ?
उनका निधन 16 जनवरी 1938 को कलकत्ता में हुआ।