क्या शिक्षा तभी सार्थक है जब वह कमजोर लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए?
सारांश
Key Takeaways
- शिक्षा का उद्देश्य समाज में सकारात्मक बदलाव लाना होना चाहिए।
- सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय जनजातीय संस्कृति का संरक्षक है।
- उच्च शिक्षा की पहुंच जनजातीय क्षेत्रों में बढ़ाना आवश्यक है।
- विद्यार्थियों को कृषि, स्वास्थ्य और सामाजिक चुनौतियों में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
- भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प महत्वपूर्ण है।
दुमका, 17 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड के राज्यपाल और राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति संतोष कुमार गंगवार ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति की शिक्षा तब सार्थक मानी जाएगी जब वह समाज, गांवों, गरीबों, दलितों, और जनजातीय समुदायों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए।
वह सोमवार को दुमका स्थित सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के 9वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह में कुल 33,697 छात्र-छात्राओं को डिग्रियां और उपाधियां प्रदान की गईं। इनमें से यूजी और पीजी पाठ्यक्रमों के 78 टॉपर्स को राज्यपाल ने गोल्ड मेडल और 37 शोधार्थियों को पीएचडी की डिग्री प्रदान की।
राज्यपाल ने उपाधि प्राप्त विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा कि दीक्षांत दिवस विद्यार्थियों के परिश्रम, अभिभावकों के त्याग और शिक्षकों के समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने महान स्वतंत्रता सेनानी सिदो और कान्हू को नमन करते हुए कहा कि संथाल विद्रोह यानी ‘हूल क्रांति’ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का स्वर्णिम अध्याय है, जिसने साहस और संगठन की अनोखी मिसाल पेश की।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के विद्यार्थी इन वीरों की प्रेरणा को अपने जीवन और कार्यक्षेत्र में आत्मसात करें। राज्यपाल गंगवार ने कहा कि सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय केवल शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि जनजातीय समाज की संस्कृति और विरासत का संरक्षक भी है।
उन्होंने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों में उच्च शिक्षा की पहुंच बढ़ाना और स्थानीय समस्याओं पर आधारित शोध को बढ़ावा देना विश्वविद्यालयों की प्राथमिक जिम्मेदारी है। उन्होंने विद्यार्थियों से कृषि, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण विकास और सामाजिक चुनौतियों के समाधान में अग्रणी भूमिका निभाने का आह्वान किया।
राज्यपाल गंगवार ने कहा कि वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प तभी पूरा होगा जब विश्वविद्यालय नवाचार, अनुसंधान और कौशल विकास को प्राथमिकता देंगे। उन्होंने विश्वास जताया कि झारखंड के युवा अपनी ऊर्जा और दृढ़ संकल्प के साथ राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
राज्यपाल ने कहा कि दीक्षांत छात्रों के लिए नए सपनों, अवसरों और जिम्मेदारियों की शुरुआत का प्रतीक है। उन्होंने विद्यार्थियों को ईमानदारी, संवेदनशीलता और कर्तव्यपरायणता के साथ आगे बढ़ने की सलाह दी और कहा कि “सच्ची सफलता वही है, जो स्वयं के साथ समाज और राष्ट्र को भी ऊंचाइयां दे।”