क्या 2025 में भी नीतीश, बिहार में 'सुशासन बाबू' का रुतबा बरकरार रहा?
सारांश
Key Takeaways
- नीतीश कुमार का प्रभाव 2025 में भी बना रहा।
- युवा नेताओं के बीच एनडीए की सफलता महत्वपूर्ण थी।
- मतदाताओं ने स्थिरता को प्राथमिकता दी।
- भाजपा ने युवा नेताओं को आगे लाने में कदम बढ़ाए।
- बिहार की राजनीति में कार्यकर्ताओं का उत्साह देखा गया।
पटना, 17 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। नए वर्ष 2026 का आगमन अब एक पखवाड़े से भी कम समय में होने वाला है। बिहार के लोग नए वर्ष 2026 का स्वागत करने की तैयारी में हैं। इस बीच, 2025 में हुई घटनाओं को याद करते हुए, बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार, जो 'सुशासन बाबू' के नाम से जाने जाते हैं, का प्रभाव इस वर्ष भी कायम रहा।
इस वर्ष के बिहार विधानसभा चुनावएनडीए ने अधिक सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की।
मतदाताओं ने नए युवा चेहरे के बजाय नीतीश कुमार का समर्थन किया। विपक्षी महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन नीतीश कुमार ने अपने कार्यों का उल्लेख करते हुए जनता से वोट मांगे। तेजस्वी ने अपनी जीत का दावा करते हुए शपथ ग्रहण की तारीख भी तय कर दी थी, लेकिन जनता ने फिर से 'सुशासन बाबू' को सत्ता सौंपी।
चुनाव में तेजस्वी और प्रशांत किशोर को निराशा मिली, जबकि राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' का भी कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। इस चुनाव ने जन सुराज और विकासशील इंसान पार्टी को नई संभावनाओं का संकेत दिया, जबकि चिराग पासवान की पार्टी ने भी अपने सफलता के झंडे गाड़े।
हालांकि बिहार के मतदाताओं ने नीतीश कुमार पर फिर से विश्वास जताया, भाजपा ने अपने युवा नेताओं को आगे लाने में सबको चौंका दिया।
भाजपा ने बांकीपुर से विधायक नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर नया संदेश दिया है, जो कि बिहार के किसी नेता को पहली बार मिली है। इसके बाद भाजपा ने यह स्पष्ट किया है कि वह युवाओं को आगे लाकर उन्हें तैयार कर रही है।
भाजपा ने दरभंगा के विधायक संजय सरावगी को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर नेतृत्व के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया है। इन नियुक्तियों से कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार हुआ है।
जहां यह वर्ष विपक्ष के युवा नेताओं के लिए चुनौतीपूर्ण रहा, वहीं एनडीए के युवा नेताओं के कई सपने साकार हुए हैं।