क्या सीपीआई (एमएल) ने एसआईआर की फाइनल सूची को लेकर सही सवाल उठाए हैं?

सारांश
Key Takeaways
- सीपीआई (एमएल) ने एसआईआर की फाइनल सूची में असंगतियों पर सवाल उठाए हैं।
- पार्टी ने निर्वाचन आयोग से पारदर्शिता की मांग की है।
- महिला मतदाताओं के अनुपात में गिरावट पर चिंता व्यक्त की गई है।
- हटाए गए मतदाताओं की सूची की मांग की गई है।
- चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
पटना, 4 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के पहले, सीपीआई (एमएल) ने एसआईआर की फाइनल सूची पर कई गंभीर प्रश्न उठाए हैं। पार्टी ने इस मामले में निर्वाचन आयोग को एक पत्र भेजकर पारदर्शिता की मांग की। सीपीआई (एमएल) का कहना है कि एसआईआर की फाइनल लिस्ट में कई असंगतियां हैं, जिनके उत्तर अभी तक नहीं मिले हैं।
पार्टी ने अपने पत्र में उल्लेख किया कि एसआईआर की ड्राफ्ट लिस्ट में 65 लाख लोगों के नाम हटाए गए थे, और फाइनल लिस्ट में 3 लाख 66 हजार और नाम काटे गए। सीपीआई (एमएल) ने सवाल उठाया कि ये नाम किस आधार पर हटाए गए, इस पर कोई सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। पार्टी ने मांग की कि हटाए गए सभी मतदाताओं की सूची और उनके कारणों के साथ, बूथवार जारी की जाए, जैसे पहले 65 लाख मतदाताओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद किया गया था।
सीपीआई (एमएल) ने बताया कि फाइनल लिस्ट में लगभग 21 लाख नए मतदाता जोड़े गए हैं, जिनमें से कुछ नए हैं और कुछ ने ड्राफ्ट लिस्ट से नाम हटाए जाने के बाद दावा-आपत्ति की थी। सीपीआई (एमएल) ने आयोग से यह भी मांग की कि पुराने मतदाताओं की पूरी सूची बूथवार सार्वजनिक की जाए, जिनके नाम दावा-आपत्ति के बाद बहाल किए गए हैं।
महिला मतदाताओं की संख्या में कमी को लेकर भी सीपीआई (एमएल) ने चिंता जताई। पार्टी ने कहा कि बिहार की जनगणना के अनुसार पुरुष-महिला अनुपात 914 है, जबकि एसआईआर की फाइनल लिस्ट में यह अनुपात 892 बताया गया है। पार्टी ने सवाल किया कि महिला मतदाताओं की संख्या में गिरावट का कारण क्या है।
पार्टी ने मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि लगभग 6 हजार ऐसे लोग हैं जिनकी नागरिकता संदिग्ध बताई जा रही है। सीपीआई (एमएल) ने मांग की कि इन सभी लोगों की सूची और आधार सार्वजनिक किए जाएं, जिनकी नागरिकता पर प्रश्न उठाया गया है। पार्टी ने चुनाव आयोग से यह भी आग्रह किया कि बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में कराए जाएं। पत्र में कहा गया कि कई चरणों में चुनाव प्रक्रिया न केवल थकाऊ और खर्चीली होती है, बल्कि सीमित संसाधनों वाली पार्टियों के लिए यह असमानता भी पैदा करती है।
सीपीआई (एमएल) ने आरोप लगाया कि कई जिलों में वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर कनीय अधिकारियों को परेडिंग ऑफिसर बनाया जा रहा है। भोजपुर से मिली रिपोर्ट का हवाला देते हुए पार्टी ने कहा कि दलित, मुस्लिम और कमजोर तबकों से आने वाले अधिकारियों को नजरअंदाज कर सामाजिक रूप से प्रभुत्वशाली समूहों के अधिकारियों को प्राथमिकता दी जा रही है। पार्टी ने मांग की कि इस पर राज्यव्यापी जांच की जाए।
चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए पार्टी ने कहा कि पोलिंग एजेंटों को 17सी फॉर्म नहीं दिया जाता, जो मतदान प्रक्रिया का अहम हिस्सा है। पार्टी ने मांग की कि आयोग इस नियम का कठोर अनुपालन सुनिश्चित करे। इसके अलावा, पार्टी ने सुझाव दिया कि दलित, मुसलमान और वंचित समुदायों के मतदाता अपने क्षेत्र में आसानी से मतदान कर सकें, इसके लिए उनके मोहल्लों में बूथ बनाए जाएं। यदि सरकारी भवन उपलब्ध न हों, तो चलंत बूथ (मोबाइलल बूथ) की व्यवस्था की जाए।
पार्टी ने आशा व्यक्त की कि आयोग इन सभी मुद्दों को गंभीरता से लेगा और आवश्यक कदम उठाएगा ताकि चुनाव प्रक्रिया पर जनता का भरोसा बना रहे। सीपीआई (एमएल) ने पत्र में कहा कि हमारा उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखना और आम मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा करना है।