क्या स्कंद षष्ठी पर संतान सुख और मनोवांछित फल के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करें?
सारांश
Key Takeaways
- स्कंद षष्ठी पूजा से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- भगवान कार्तिकेय का व्रत विधि-विधान से करना चाहिए।
- अभिजीत मुहूर्त का ध्यान रखें।
- चंपा के फूल का विशेष महत्व है।
- आरती और मंत्र जाप से विशेष लाभ होता है।
नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि सोमवार को मनाई जाएगी। यह पर्व भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा और व्रत करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, सोमवार के दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा धनु राशि में रहेंगे। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 42 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा, जबकि राहुकाल का समय सुबह 7 बजकर 53 मिनट से शुरू होकर 9 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।
स्कंद षष्ठी का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है, जिसमें बताया गया है कि भगवान कार्तिकेय ने इस दिन तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था। देवताओं ने इस दिन जीत की खुशी में स्कंद षष्ठी का उत्सव मनाया था। यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है। मान्यता है कि जो महिलाएं संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें स्कंद षष्ठी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है।
इस दिन विधि-विधान से पूजा करने के लिए जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और आसन बिछाएं। फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उसके ऊपर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें और व्रत संकल्प लें।
इसके बाद कार्तिकेय भगवान को वस्त्र, इत्र, चंपा के फूल, आभूषण, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित करें। भगवान कार्तिकेय का प्रिय पुष्प चंपा है, इस वजह से इस दिन को स्कंद षष्ठी, कांडा षष्ठी के साथ चंपा षष्ठी भी कहते हैं।
भगवान कार्तिकेय की आरती और तीन बार परिक्रमा करने के बाद “ऊं स्कंद शिवाय नमः” मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है। इसके बाद आरती का आचमन कर आसन को प्रणाम करें और प्रसाद ग्रहण करें।