क्या शब्दों से संवेदना गढ़ने वाली कवयित्री, हिंदी-अंग्रेजी साहित्य की सेतु निर्माता सुनीता जैन हैं?

सारांश
Key Takeaways
- सुनीता जैन का लेखन साहित्य के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है।
- उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उत्कृष्टता प्राप्त की।
- उनकी कविताएं और कहानियां आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं।
- उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
- उनका लेखन स्त्री अस्मिता और मानवता का प्रतीक है।
नई दिल्ली, 12 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। जब शब्द संवाद से कहीं अधिक संवेदना में तब्दील हो जाते हैं, जब भाषा किसी एक सीमित दायरे में न रहकर वैश्विक बन जाती है, और जब एक महिला अपने लेखन के माध्यम से दो संस्कृतियों के बीच पुल बना देती है, तो वह नाम लिया जाता है सुनीता जैन का।
भारतीय साहित्य में 13 जुलाई का दिन केवल एक तिथि नहीं है, बल्कि यह एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है। यह वही दिन है जब अंबाला की धरती पर जन्मी एक साधारण लड़की ने न केवल हिंदी साहित्य में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की, बल्कि अंग्रेजी साहित्य में भी एक ऐसा हस्ताक्षर बना जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी कविताओं की कोमलता से लेकर उपन्यासों की गहराई तक, सुनीता जैन ने शब्दों को जीवन की तरह जिया। भाषा की सीमाएं पार करते हुए उन्होंने मानवता को अभिव्यक्ति दी। वे केवल एक लेखिका नहीं थीं, बल्कि भारतीय साहित्य की दो भाषाओं में पुल बनाने वाली एक रचनात्मक शक्ति थीं, जो आज भी हमारी स्मृतियों और शब्दों में जीवित हैं।
साल 1941 में 13 जुलाई को अंबाला में जन्मी सुनीता जैन का जीवन और लेखन, दोनों ही भारतीय स्त्री लेखन की गरिमा को नई ऊचाइयों पर ले गए। हरियाणा की सादगी में उनका बचपन बीता और किशोरावस्था में वे दिल्ली आ गईं, जहाँ उन्होंने अपने सपनों को आकार दिया। वे न केवल भारत के लिए, बल्कि वैश्विक साहित्यिक धारा की एक मजबूत प्रतिनिधि बनीं।
सुनीता जैन की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि वे हिंदी और अंग्रेजी, दोनों भाषाओं में समान अधिकार से लिखती रहीं। उनकी लेखनी में भारतीय स्त्री की अंतर्दृष्टि, जीवन की विडंबनाएं, सामाजिक विसंगतियां और आत्मसंघर्ष का सौंदर्य अद्भुत रूप से उभरता है। न्यूयॉर्क की स्टेट यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी साहित्य में उन्होंने एमए और यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का से पीएचडी की।
उनका पहला उपन्यास 1964 में और पहली कविता 1962 में प्रकाशित हुई। यह एक विशाल साहित्यिक यात्रा की शुरुआत थी, जिसमें उन्होंने 70 से अधिक पुस्तकें, 20 कविता संग्रह, 5 उपन्यास और 4 कहानी संग्रह रचे। हर विधा में उनकी लेखनी का प्रभुत्व दिखाई देता है, चाहे वह आलोचना हो, आत्मकथा हो या रचनात्मक अनुवाद।
सुनीता जैन की कविताएं उनकी आत्मा की आवाज थीं। 'हो जाने दो मुक्त' उनका पहला कविता संग्रह था, जिसने उन्हें एक संवेदनशील कवयित्री के रूप में स्थापित किया। 'वापिस उसी किताब में', 'स्त्री सुनती है', 'पंद्रह वर्ष बाद', जैसी कविताएं आज भी पाठकों के दिलों में गूंजती हैं। उनकी कहानियां 'धर्मयुग' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका में छपकर चर्चा का विषय बनीं।
साहित्य में उनके योगदान को भारत सरकार ने 2004 में 'पद्मश्री' से सम्मानित किया। वे ‘विश्व हिन्दी सम्मान’ प्राप्त करने वाली पहली हिन्दी कवयित्री बनीं। 2007 में उन्हें यह सम्मान न्यूयॉर्क में आयोजित आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में मिला। अमेरिका में भी उनकी अंग्रेजी रचनाओं को 'द वैरलैंड अवार्ड', 'मैरी सैंडोज प्रेयरी शूनर फिक्शन अवार्ड' जैसे अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया।
वह महादेवी वर्मा सम्मान, प्रभा खेतान सम्मान, साहित्य सम्मान, निराला नमित सम्मान और व्यास सम्मान जैसे गौरवशाली पुरस्कारों से सम्मानित हुईं। यह अद्भुत है कि एक ही लेखिका ने दो भाषाओं में इतनी समान गति से रचना की और दोनों ही भाषाओं में पाठकों का हृदय जीत लिया।
सुनीता जैन का लेखन केवल साहित्य नहीं, बल्कि स्त्री अस्मिता, संवेदना, बौद्धिकता और आत्म-प्रकाश का एक आंदोलन था। उनकी स्मृति में नेब्रास्का-लिंकन विश्वविद्यालय में 'सुनीता जैन साहित्य पुरस्कार' की स्थापना की गई है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।