क्या सुप्रीम कोर्ट ने 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
- आरोपियों की रिहाई का आदेश प्रभावी नहीं होगा।
- हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर रोक लगाई गई।
- मुंबई में 2006 में हुए विस्फोटों में 189 लोग मारे गए थे।
- यह फैसला अन्य मामलों में नजीर नहीं बनेगा।
नई दिल्ली, २४ जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोटों के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा 12 आरोपियों को बरी करने के निर्णय पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस आदेश का उन आरोपियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जो पहले ही जेल से रिहा हो चुके हैं। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट का यह निर्णय अन्य मामलों में मिसाल नहीं बनेगा।
गुरुवार को, सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से दायर याचिका पर यह निर्णय सुनाया। सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 12 आरोपियों को नोटिस जारी करते हुए हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर भी रोक लगाई।
महाराष्ट्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि वे आरोपियों को वापस जेल भेजने की मांग नहीं कर रहे हैं, लेकिन हाईकोर्ट की कुछ टिप्पणियां मकोका के दूसरे मामलों पर असर डाल सकती हैं।
इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने उन टिप्पणियों पर रोक लगा दी और कहा कि हाईकोर्ट का आदेश अन्य मामलों में नजीर नहीं बनेगा।
21 जुलाई को, बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई ब्लास्ट मामले में 12 आरोपियों को बरी कर दिया था। यह निर्णय न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति एस चांडक की पीठ ने सुनाया। इस मामले में कुल 13 आरोपी थे, जिनमें से एक को पहले ही बरी किया जा चुका था। 21 जुलाई को हाईकोर्ट ने 12 लोगों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया, जिनमें से 5 को मृत्युदंड की सजा और 7 को आजीवन कारावास की सजा काटनी थी।
जुलाई 2006 में, मुंबई में वेस्टर्न लाइन की लोकल ट्रेनों में 7 बम विस्फोट हुए थे। इन विस्फोटों में कुल 189 नागरिकों की जान गई और लगभग 820 लोग गंभीर रूप से घायल हुए, जिन्हें कुख्यात "7/11 मुंबई विस्फोट" के नाम से जाना जाता है।