बिहार मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण: चुनाव आयोग की आपत्तियों पर सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया क्या है?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण की सुनवाई की।
- विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के निर्णय पर आपत्ति जताई।
- यह मामला लोकतंत्र के मूल अधिकारों से जुड़ा है।
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर टिप्पणी की।
- आयोग ने 11 दस्तावेजों की अनिवार्यता को स्पष्ट किया।
नई दिल्ली, 10 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में चल रहे मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के संबंध में सुनवाई की। कांग्रेस, टीएमसी, राजद, सीपीआई (एम) जैसे कई विपक्षी दलों ने बिहार में मतदाता गहन पुनरीक्षण पर रोक लगाने की माँग की। लेकिन चुनाव आयोग ने इन याचिकाओं पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उसका मतदाताओं के साथ सीधा संबंध है।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार में मतदाता गहन पुनरीक्षण के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने चुनाव आयोग की तरफ से अपना पक्ष रखा, जबकि कपिल सिब्बल और गोपाल शंकर नारायण ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील पेश की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची में संशोधन करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएँ एक ऐसे मुद्दे को उठाती हैं, जो लोकतंत्र की जड़ों को प्रभावित करती हैं, जिसमें वोट देने का अधिकार शामिल है।
याचिकाकर्ता के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद, जस्टिस धूलिया और बागची ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह मुद्दा लोकतंत्र की जड़ों से संबंधित है, वोट का अधिकार।" उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता न केवल चुनाव आयोग के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) की शक्ति को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया और समय पर भी सवाल उठा रहे हैं।
हालांकि, चुनाव आयोग का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने अदालत से इस स्तर पर एसआईआर प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करने की अपील की। उन्होंने कहा, "संशोधन प्रक्रिया पूरी होने दें, फिर पूरी तस्वीर देखी जा सकती है।" इस पर पीठ ने कहा कि एक बार मतदाता सूची संशोधित होकर विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी, तो "कोई भी अदालत इसे नहीं छू सकेगी।"
याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम सभी याचिकाओं पर नहीं जाएंगे। हम मूल कानूनी सवालों पर चर्चा करेंगे। पहले एडीआर की ओर से वकील गोपाल शंकर नारायण ने दलील दी।
याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि मतदाता गहन पुनरीक्षण में 11 दस्तावेजों को अनिवार्य किया गया है। यह पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है। एसआईआर का निर्णय न तो आरपी एक्ट में है और न ही इलेक्शन रूल में है। आयोग का कहना है कि 1 जनवरी 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम जोड़ने वालों को अब दस्तावेज देने होंगे। यह भेदभावपूर्ण है।
नारायण ने कहा, "1 जुलाई 2025 को 18 साल की उम्र वाले नागरिक वोटर लिस्ट में शामिल हो सकते हैं। वोटर लिस्ट की समरी, यानी समीक्षा हर साल नियमित रूप से की जाती है। इस बार की भी हो चुकी है। इसलिए अब इसे करने की आवश्यकता नहीं है।"
इस पर जस्टिस धूलिया ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आप यह नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह नहीं कर सकता। चुनाव आयोग तारीख तय कर रहा है, इसमें आपको आपत्ति क्या है? आप तर्कों से साबित करें कि आयोग सही नहीं कर रहा है।
सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी पर याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा, "चुनाव आयोग इसे पूरे देश में लागू करना चाहता है और इसकी शुरुआत बिहार से कर रहा है।"
इसके जवाब में जस्टिस धूलिया ने कहा, "चुनाव आयोग वही कर रहा है, जो संविधान में दिया गया है, तो आप यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा कुछ कर रहे हैं, जो उन्हें नहीं करना चाहिए?"
गोपाल शंकर नारायण ने कहा, "चुनाव आयोग वह कर रहा है, जो उसे नहीं करना चाहिए। यहां कई स्तरों पर उल्लंघन हो रहा है। यह पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। मैं आपको दिखाऊंगा कि उन्होंने किस तरह के सुरक्षा उपाय दिए हैं। दिशानिर्देशों में कुछ ऐसे वर्गों का उल्लेख है, जिन्हें इस रिविजन प्रक्रिया के दायरे में नहीं लाया गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया का कानून में कोई आधार नहीं है।"
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि क्या चुनाव आयोग जो सघन परीक्षण कर रहा है, वह नियमों में है या नहीं, और यह सघन परीक्षण कब किया जा सकता है? जस्टिस धूलिया ने कहा, "आप यह बताइए कि यह आयोग के अधिकार क्षेत्र में है या नहीं।"
वकील गोपाल नारायण ने कहा, "यह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में है।" जस्टिस धूलिया ने कहा, "इसका मतलब है कि आप अधिकार क्षेत्र को नहीं बल्कि सघन परीक्षण करने के तरीके को चुनौती दे रहे हैं।"
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में 11 दस्तावेजों को मांगे जाने की वजह बताई। ईसी ने कहा, "जिन 11 दस्तावेजों को मांगा गया है, उनके पीछे एक उद्देश्य है। आधार कार्ड को आधार कार्ड एक्ट के तहत लाया गया है। 60 फीसदी लोगों ने अब तक फॉर्म भर दिया है। अब तक आधे से अधिक फॉर्म को अपलोड भी कर दिया गया है। आधार कार्ड कभी भी नागरिकता का आधार नहीं हो सकता। यह केवल एक पहचान पत्र है। जाति प्रमाण पत्र आधार कार्ड पर निर्भर नहीं है। आधार केवल पहचान पत्र है, उससे ज्यादा कुछ नहीं।"
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हम आयोग पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। आयोग ने साफ कह दिया है कि 11 दस्तावेजों के अलावा भी दूसरे दस्तावेज शामिल हो सकते हैं। हम मामले की सुनवाई अगस्त में करते हैं?" इस पर आयोग ने कहा, "2 अगस्त को सुनवाई कर लीजिए। ड्राफ्ट के प्रकाशन पर रोक मत लगाइए, नहीं तो पूरा प्रोसेस लेट हो जाएगा।"
आयोग ने आगे कहा, "हमें प्रक्रिया पूरी करने दीजिए और फिर कोई फैसला लेंगे। नवंबर में चुनाव हैं और हमें अभी क्यों रोका जाए? आप हमें बाद में भी रोक सकते हैं।"
इस पर जस्टिस बागची ने कहा, "हम चुनाव आयोग के काम में दखल देने के पक्ष में नहीं हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम चुनाव आयोग को एसआईआर करने से रोक नहीं सकते। वह संवैधानिक संस्था है। हम मामले की सुनवाई अगस्त से पहले करेंगे। हम 28 जुलाई को मामले की सुनवाई करेंगे।