क्या तमिल साहित्यकार तमिलनबान को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई?
सारांश
Key Takeaways
- तमिलनबान ने तमिल साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उनका निधन तमिल जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।
- मुख्यमंत्री ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
- उनकी रचनाएँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
- तमिल संस्कृति और भाषा को उन्होंने ऊंचाई दी।
चेन्नई, 23 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रसिद्ध तमिल साहित्यकार और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता इरोड तमिलनबान का रविवार को चेन्नई में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
इस 92 वर्षीय कवि का निधन शनिवार को हो गया था। रविवार को अरुमबक्कम इलेक्ट्रिक श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ, जहां मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के निर्देश पर सशस्त्र पुलिस दल ने उन्हें सलामी दी।
तमिलनबान हाल ही में गंभीर श्वसन संबंधी समस्याओं के कारण शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे। गहन चिकित्सा के बावजूद, उन्होंने शनिवार दोपहर अंतिम सांस ली।
उनका पार्थिव शरीर इसके बाद कोयंबेडु स्थित निवास पर अंतिम दर्शनों के लिए रखा गया। देर रात तक बड़ी संख्या में राजनीतिक नेता, साहित्यकार, कलाकार और प्रशंसक उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने शनिवार को उनके निवास जाकर शोक संवेदना व्यक्त की। उन्होंने अपने संदेश में तमिलनबान को "तमिल भाषा, संस्कृति और विद्वता को ऊंचाई देने वाला असाधारण साहित्यिक व्यक्तित्व" कहा।
उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने भी रविवार सुबह अंतिम संस्कार से पहले उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
1933 में इरोड जिले के चेननिमलाई में जन्मे तमिलनबान ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उनकी रचनाओं में प्राचीन तमिल कविता, आधुनिक मुक्त छंद, हाइकु, लघुकथाएं, उपन्यास, नाटक, निबंध और बाल साहित्य शामिल हैं।
उन्हें वर्ष 2004 में 'वनक्कम वल्लुवा' कृति के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसमें उन्होंने तिरुवल्लुवर के नैतिक दर्शन को आधुनिकता के संदर्भ में प्रस्तुत किया। इसके अलावा, उन्हें कलैमामणि पुरस्कार सहित कई और सम्मान प्राप्त हुए हैं।
अंतिम संस्कार के बाद, वीसीके नेता और चिदंबरम सांसद थोल. तिरुमावलवन ने उन्हें "तमिल चिंतन का महान धरोहर और वैश्विक साहित्यिक कद की आवाज़" कहा।
उन्होंने कहा कि उनका निधन "तमिल जगत के लिए अपूरणीय क्षति" है। तमिलनाडु ने आज एक ऐसे साहित्यिक स्तंभ को विदाई दी, जिसने समकालीन तमिल साहित्य की दिशा और पीढ़ियों की सोच को गहराई से प्रभावित किया। उनकी विरासत, प्रशंसकों के अनुसार, उनकी रचनाओं की अमर आवाज़ में सदैव जीवित रहेगी।