क्या 5 जुलाई को उद्धव-राज का संयुक्त मार्च नहीं होगा?

सारांश
Key Takeaways
- 5 जुलाई को उद्धव-राज का संयुक्त मार्च नहीं होगा।
- हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में शामिल करने का निर्णय रद्द कर दिया गया है।
- मराठी को अनिवार्य भाषा बनाने का निर्णय लिया गया है।
- संजय राउत ने इस निर्णय को मराठी एकता की जीत बताया।
- नरेंद्र जाधव समिति की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई होगी।
मुंबई, 29 जून (राष्ट्र प्रेस)। शिवसेना-यूबीटी के सांसद संजय राउत ने रविवार को यह जानकारी दी कि पार्टी के नेता उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की उपस्थिति में 5 जुलाई को मुंबई में आयोजित होने वाला संयुक्त मार्च अब नहीं होगा। इसका कारण यह है कि महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक के लिए मराठी और अंग्रेजी के बाद तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को शामिल करने के अपने निर्णय को वापस ले लिया है।
राउत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा, “सरकार द्वारा हिंदी लागू करने का आदेश रद्द! यह मराठी एकता की जीत है। ठाकरे का एक साथ आना अब डर की बात बन गया है। 5 जुलाई का संयुक्त मार्च अब नहीं होगा; लेकिन... ठाकरे का नाम हमेशा रहेगा! फडणवीस द्वारा लिया गया यह एक समझदारी भरा कदम है।”
संजय राउत की यह घोषणा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा रविवार को मराठी छात्रों के हित में त्रिभाषी फॉर्मूले पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति के गठन की घोषणा के बाद आई।
उन्होंने बताया कि राज्य मंत्रिमंडल ने 16 अप्रैल और 17 जून को जारी दो सरकारी प्रस्तावों को रद्द करने का निर्णय लिया है, जिनमें कहा गया था कि राज्य सरकार ने मराठी को अनिवार्य और हिंदी को वैकल्पिक भाषा के रूप में मान्यता दी है। समिति ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए तीन महीने का समय मांगा है।
16 अप्रैल के प्रस्ताव में कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का सुझाव दिया गया था, लेकिन विभिन्न विरोधों के कारण इसे रोक दिया गया। 17 जून को संशोधित सरकारी आदेश जारी किया गया, जिसके तहत सभी स्कूलों में मराठी को अनिवार्य रखा गया, जबकि हिंदी वैकल्पिक बनी रही।
छात्रों को भारतीय भाषाओं में से किसी एक का चयन करने का विकल्प दिया गया है। यदि किसी स्कूल में प्रति कक्षा 20 छात्र हिंदी के सिवा कोई अन्य भारतीय भाषा सीखने की इच्छा रखते हैं, तो उन्हें हिंदी के बजाय अन्य भारतीय भाषाओं में से चयन करने की अनुमति दी जाएगी। इसका अर्थ है कि सरकार ने त्रिभाषी नीति को लागू नहीं करने का निर्णय लिया है, लेकिन नरेंद्र जाधव समिति की रिपोर्ट के आधार पर आगे की योजना बनाई जाएगी।