क्या उज्जैन का चमत्कारी घाट पितरों को बैकुंठ धाम दिलाने में सक्षम है?

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क्या उज्जैन का चमत्कारी घाट पितरों को बैकुंठ धाम दिलाने में सक्षम है?

सारांश

उज्जैन, जिसे अवंतिका नगरी और बाबा महाकाल की भूमि कहा जाता है, पितृ पक्ष के दौरान श्रद्धालुओं से भरा रहता है। यहां के रामघाट, सिद्धवट और गयाकोठा तीर्थ पर श्राद्ध कर्म की अनूठी परंपरा है, जो पितरों को बैकुंठ धाम पहुंचाने में मदद करती है।

Key Takeaways

  • उज्जैन की धार्मिकता और पवित्रता
  • रामघाट और सिद्धवट का महत्व
  • पितृ कर्म की परंपरा
  • पुरोहितों का वंशावली रिकॉर्ड
  • मोक्ष की प्राप्ति के उपाय

उज्जैन, 18 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। उज्जैन को अवंतिका नगरी और बाबा महाकाल की भूमि के रूप में भी जाना जाता है। सतयुग से ही यहां तर्पण और श्राद्ध कर्म की परंपरा चली आ रही है। उज्जैन में सिद्धवट, रामघाट और गयाकोठा तीर्थ पर पिंडदान और तर्पण सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं।

उज्जैन की मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के घाटों पर प्रतिवर्ष पितृ पक्ष के दौरान हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। इनमें सबसे प्रमुख रामघाट है, जिसकी मान्यता भगवान श्रीराम से जुड़ी हुई है।

कथा है कि वनवास काल में भगवान राम जब उज्जैन आए थे, तब उन्होंने शिप्रा नदी के तट पर अपने पिता महाराज दशरथ के लिए तर्पण और पिंडदान किया था।

इसी प्रकार सिद्धवट घाट का महत्व भी अत्यधिक है। यहां एक प्राचीन वटवृक्ष स्थित है, जिसके बारे में मान्यता है कि इसे माता पार्वती ने लगाया था। इसका वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है।

देशभर में ऐसे चार सिद्धवट माने जाते हैं, जिनमें से एक उज्जैन का सिद्धवट है। इसे प्रेतशिला और शक्तिभेद तीर्थ भी कहा जाता है। यहां पितरों का श्राद्ध करने से वे तुरंत तृप्त होते हैं और आदित्यलोक की प्राप्ति करते हैं।

मान्यता है कि जब भगवान महाकाल की सेना में शामिल भूत-प्रेतों ने मुक्ति का स्थान मांगा, तब भगवान शिव ने उन्हें सिद्धवट क्षेत्र दिया, तभी से यह स्थान मुक्ति और श्राद्ध कर्म के लिए सर्वोपरि माना जाता है।

उज्जैन का गयाकोठा मंदिर भी पितृ कर्म के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां हजारों लोग दूध और जल से तर्पण तथा पिंडदान करते हैं। ऋषि तलाई नामक स्थान पर फल्गुन नदी का गुप्त प्राकट्य माना जाता है। यहां सप्तऋषियों को साक्षी मानकर पितरों का श्राद्ध करने से वैसा ही फल मिलता है, जैसे गयाजी धाम में श्राद्ध करने से प्राप्त होता है।

उज्जैन की एक और विशेषता यह है कि यहां के पुरोहितों के पास लगभग 150 साल पुराना वंशावली रिकॉर्ड मौजूद है। आज के डिजिटल युग में भी वे बिना किसी कंप्यूटर की मदद के, मात्र गोत्र, समाज या गांव का नाम पूछकर पीढ़ियों का विवरण बही-खातों से बता देते हैं। यह प्राचीन पद्धति आज भी मान्य है और कोर्ट में भी इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है।

Point of View

बल्कि पूरे देश भर से लोग यहां आते हैं। यह स्थान भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है, जहां श्राद्ध कर्म के माध्यम से पितरों को सम्मान दिया जाता है। यह धार्मिकता और आस्था का एक अद्भुत उदाहरण है।
NationPress
18/09/2025

Frequently Asked Questions

उज्जैन के प्रमुख घाट कौन से हैं?
उज्जैन में प्रमुख घाट हैं रामघाट, सिद्धवट और गयाकोठा।
क्या यहां श्राद्ध कर्म करना महत्वपूर्ण है?
हां, यहां श्राद्ध कर्म करने से पितरों को तृप्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सिद्धवट घाट का क्या महत्व है?
सिद्धवट घाट का महत्व इसलिए है क्योंकि इसे माता पार्वती द्वारा लगाए गए वटवृक्ष का स्थान माना जाता है।
उज्जैन में पितृ कर्म कब किया जाता है?
उज्जैन में पितृ कर्म पितृ पक्ष के दौरान किया जाता है।
क्या पुरोहितों के पास वंशावली रिकॉर्ड है?
हां, उज्जैन के पुरोहितों के पास 150 साल पुराना वंशावली रिकॉर्ड है।