उन्नाव केस: क्या योगिता भयाना ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है?
सारांश
Key Takeaways
- उन्नाव केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण है।
- योगिता भयाना का मानना है कि यह फैसला सभी बेटियों के लिए मायने रखता है।
- जमानत का मतलब निर्दोष नहीं होता।
- राजनीति में सवाल उठाना लोकतंत्र का हिस्सा है।
- उम्र का बलात्कार में कोई महत्व नहीं होता।
नई दिल्ली, 30 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। उन्नाव रेप केस में पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर को हाईकोर्ट से मिली जमानत पर सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बाद देशभर से प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। इस फैसले का स्वागत करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा कि यह सही और जरूरी फैसला था, जो केवल पीड़िता के लिए नहीं, बल्कि देश की हर बेटी के लिए मायने रखता है।
योगिता ने बताया कि हाईकोर्ट में कुलदीप सेंगर को जमानत देने के फैसले में कई ऐसे तर्क थे, जो गलत थे और पीड़िता का मनोबल तोड़ सकते थे। अगर सुप्रीम कोर्ट ने समय पर इस पर स्टे नहीं दिया होता, तो यह गलत संदेश जाता कि हमारी बेटियाँ न्याय से वंचित हैं। उन्होंने कहा कि इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि न्याय की लड़ाई लड़ने वाली बेटियों को समर्थन मिलेगा।
योगिता ने ऐश्वर्या सेंगर के बयान पर भी टिप्पणी की। ऐश्वर्या ने अपने पिता को निर्दोष बताया। योगिता ने कहा कि ऐश्वर्या खुद कुलदीप सेंगर की बेटी हैं, इसलिए वह यही कहेंगी कि उनके पिता निर्दोष हैं। लेकिन पीड़िता की स्थिति को कोई नहीं समझ सकता।
उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर निचली अदालत ने उनके पिता को दोषी ठहराया और हाई कोर्ट ने भी फैसले को बरकरार रखा, तो इसका मतलब है कि कानून ने अपना फैसला सुनाया है। कहीं भी यह नहीं कहा गया कि वह बेकसूर हैं। केवल जमानत का प्रावधान है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह निर्दोष हैं। रेपिस्ट हमेशा रेपिस्ट होता है, चाहे वह पिता हो या कोई और।
योगिता ने कहा कि निचली अदालत ने ट्रायल करके सजा दी और हाई कोर्ट ने भी इसे बदला नहीं। केवल जमानत दी गई है। वह खुद निचली या हाई कोर्ट की जज नहीं हैं। वह इसलिए पीड़िता के साथ खड़ी हैं क्योंकि आरोपी दोषी है। अगर वह केवल आरोपी होते, तो शायद कुछ संदेह हो सकता था। लेकिन अब फैसला कानून के अनुसार हो चुका है।
योगिता ने कहा कि कुलदीप सेंगर चार बार विधायक रहे हैं। इसलिए राजनीति स्वाभाविक है। अगर विपक्ष सवाल उठाता है तो यह लोकतंत्र का हिस्सा है। राजनीति में बुराई नहीं है। सवाल उठना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दोषसिद्धि बदल गई।
ऐश्वर्या ने यह भी कहा कि पीड़िता उस वक्त 18 साल से ज्यादा थी। इस पर योगिता ने कहा कि उम्र से फर्क नहीं पड़ता, बलात्कार तो बलात्कार है। जो सबूत निचली अदालत में दिए गए, गवाहों ने जो कहा, उसी के आधार पर फैसला हुआ। केवल ऐश्वर्या के बयान से कुछ बदलने वाला नहीं है। अगर वे चाहें तो हाई कोर्ट में चुनौती दे सकती हैं, लेकिन फिलहाल फैसला कानून के अनुसार ही दिया गया है।