क्या बीते एक दशक में यूरिया का उत्पादन 35 प्रतिशत बढ़ा और डीएपी का प्रोडक्शन 44 प्रतिशत बढ़ गया?

सारांश
Key Takeaways
- यूरिया और डीएपी का उत्पादन बढ़ा है।
- सरकार की योजनाएँ खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित हैं।
- अंतरराष्ट्रीय समझौतों से भारत की खाद्य सुरक्षा मजबूत हुई है।
नई दिल्ली, 22 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने शुक्रवार को जानकारी दी कि यूरिया उत्पादन वित्त वर्ष 2013-14 में 227.15 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 306.67 एलएमटी तक पहुँच गया है, जो पिछले एक दशक में 35 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।
मंत्रालय ने बताया कि इसी समयावधि में डीएपी और एनपीकेएस उर्वरकों का संयुक्त उत्पादन 110.09 एलएमटी से बढ़कर 158.78 एलएमटी हो गया है, जो उर्वरक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ाने के लिए सरकार के निरंतर प्रयासों को दर्शाता है।
अधिकारी ने आगे कहा कि वैश्विक चुनौतियों के बीच, सरकार ने मजबूती और दूरदर्शिता का परिचय दिया है। हमारे किसानों को खाद्य सामग्री की किसी भी प्रकार की कमी का सामना न करना पड़े, इसके लिए केंद्र ने समय पर राजनयिक संपर्क, रसद हस्तक्षेप और दीर्घकालिक व्यवस्थाओं के माध्यम से आपूर्ति सुनिश्चित की है।
सरकार ने बताया कि भारतीय उर्वरक कंपनियों और मोरक्को के एक संघ के बीच 25 लाख मीट्रिक टन डीएपी और टीएसपी की आपूर्ति के लिए एक समझौता हुआ है।
इसके अलावा, सऊदी अरब और भारतीय कंपनियों के बीच जुलाई में समझौता हुआ कि 2025-26 से शुरू होकर पांच वर्षों के लिए 31 लाख मीट्रिक टन डीएपी की वार्षिक आपूर्ति की जाएगी।
ये सभी अंतरराष्ट्रीय समझौते भारत की दीर्घकालिक उर्वरक आवश्यकताओं को पूरा करने और राज्यों को समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए किए गए हैं।
मंत्रालय के अनुसार, यूरिया की 143 लाख मीट्रिक टन की आनुपातिक आवश्यकता के मुकाबले कुल उपलब्धता 183 लाख मीट्रिक टन है, जबकि बिक्री 155 लाख मीट्रिक टन रही है।
इसी तरह, डीएपी में 45 लाख मीट्रिक टन की आनुपातिक आवश्यकता के मुकाबले उपलब्धता 49 लाख मीट्रिक टन है और 33 लाख मीट्रिक टन की बिक्री की गई है। एनपीके की 58 लाख मीट्रिक टन की आनुपातिक आवश्यकता के मुकाबले 97 लाख मीट्रिक टन की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है। अब तक 64.5 लाख मीट्रिक टन एनपीके की बिक्री हो चुकी है।
मंत्रालय ने आगे बताया कि देश में घरेलू उर्वरक उत्पादन और रणनीतिक वैश्विक साझेदारियों में एक बड़ा परिवर्तन देखा गया है, जिससे सामूहिक रूप से भारत की खाद्य सुरक्षा को मजबूती मिली है।