क्या उत्तराखंड में मदरसा बोर्ड समाप्त हो रहा है? राज्यपाल ने अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025 को दी मंजूरी

सारांश
Key Takeaways
- मदरसा बोर्ड का अंत और मुख्यधारा की शिक्षा से जुड़ाव।
- आधुनिक विषयों का पाठ्यक्रम में समावेश।
- समान शिक्षा और अवसर प्रदान करने का उद्देश्य।
- जुलाई 2026 से लागू होने वाले नए नियम।
देहरादून, 6 अक्तूबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तराखंड में मदरसा बोर्ड अब समाप्ति के कगार पर है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) ने उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक, 2025 को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक के लागू होने के बाद प्रदेश में संचालित सभी मदरसों को उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण से मान्यता प्राप्त करनी होगी और उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद (उत्तराखंड बोर्ड) से संबद्ध होना अनिवार्य होगा।
यह निर्णय राज्य की शिक्षा प्रणाली को समान, समावेशी और आधुनिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह कदम उत्तराखंड में शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा।
उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य है कि प्रदेश का हर बच्चा, चाहे वह किसी भी वर्ग या समुदाय से हो, समान शिक्षा और अवसरों के साथ आगे बढ़े।”
उन्होंने जानकारी दी कि जुलाई 2026 से सभी अल्पसंख्यक विद्यालयों में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और नई शिक्षा नीति के तहत शिक्षा दी जाएगी। इससे न केवल शिक्षा का स्तर ऊंचा होगा, बल्कि छात्रों को मुख्यधारा में शामिल होने का अवसर भी मिलेगा।
इस विधेयक के तहत अब मदरसों को उत्तराखंड बोर्ड के तहत पंजीकरण कराना होगा और उनके पाठ्यक्रम में विज्ञान, गणित, और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों को शामिल करना अनिवार्य होगा। साथ ही, आधुनिक तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर भी जोर दिया जाएगा, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को एक बेहतर भविष्य के लिए सशक्त किया जा सकेगा।
उत्तराखंड इस निर्णय के साथ देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां मदरसा बोर्ड को समाप्त कर अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली से जोड़ा जाएगा। यह कदम शिक्षा में एकरूपता लाने और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। हालांकि, कुछ संगठनों ने इस निर्णय को लेकर चिंता जताई है।
उनका कहना है कि मदरसों की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखने के लिए विशेष प्रावधान किए जाने चाहिए। इस पर सरकार ने आश्वासन दिया है कि धार्मिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करने की छूट रहेगी, लेकिन आधुनिक शिक्षा पर प्राथमिकता दी जाएगी।