क्या वन्दे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर भारतीय सेना ने मां भारती को नमन किया?
सारांश
Key Takeaways
- वन्दे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर भारतीय सेना ने मां भारती को नमन किया।
- यह गीत स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है।
- बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत आज भी हर भारतीय के दिल में बसा है।
- केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने इसे राष्ट्रीय आत्मगौरव का क्षण बताया।
- हमारा संकल्प है कि राष्ट्रहित और राष्ट्रसेवा सर्वोपरि रहें।
नई दिल्ली, 7 नवंबर (राष्ट्र प्रेस) मातृभूमि के प्रति समर्पण और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक ‘वन्दे मातरम्’ आज 150 वर्षों की गौरवपूर्ण यात्रा को स्मरण कर रहा है। इस ऐतिहासिक अवसर पर भारतीय सेना ने मां भारती को नमन किया।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1875 में रचित “वन्दे मातरम्” केवल एक गीत नहीं, बल्कि यह एक जयघोष था जिसने स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा प्रदान की और हर भारतीय के दिल में राष्ट्रप्रेम की ज्वाला प्रज्वलित की।
भारतीय सेना ने वन्दे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर कहा, “बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की कलम से जन्मा, वन्दे मातरम् केवल एक गीत नहीं - यह हमारी आत्मा की पुकार थी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को जीवन दिया और राष्ट्रभक्ति को स्वर दिया।”
देश के सैन्य प्रतिष्ठानों, रेजिमेंटल केंद्रों और सीमा चौकियों में वन्दे मातरम् गर्व के साथ गाया जाता है। सैनिक राष्ट्रध्वज फहराकर, इस गीत को सामूहिक रूप से गाते आए हैं और देश के प्रति अपनी निष्ठा का संकल्प दोहराते हैं।
शुक्रवार को सेना ने अपने संदेश में कहा, “150 वर्षों बाद भी इसकी गूंज हर सैनिक के कदमों में, हर सलामी में, हर बलिदान में सुनाई देती है। वन्दे मातरम् - माँ भारती के चरणों में समर्पित हर एक सैनिक के हृदय की अमर पुकार है।”
गौरतलब है कि बंकिम चंद्र की कलम से जन्मा यह गीत करोड़ों देशवासियों की आत्मा की पुकार बना। इसने हमें गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने की शक्ति दी। आज भी ‘वन्दे मातरम्’ हर सैनिक के दिल की अमर ध्वनि है। 1882 में आनंदमठ उपन्यास में वन्दे मातरम् प्रकाशित हुआ था। यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बना। 1905 के बंग-भंग आंदोलन से लेकर 1947 की आजादी तक यह राष्ट्रभक्ति का सूत्रधार रहा।
आज 150 वर्षों बाद भी वन्दे मातरम् भारत की आत्मा में जीवित है। हर सैनिक की चाल में, हर ध्वज की लहर में और हर भारतीय की सांस में बसता है। इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि वन्दे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ हमारे राष्ट्रीय आत्मगौरव और सांस्कृतिक चेतना का ऐसा क्षण है, जो हर भारतीय के हृदय में मां भारती के प्रति अटूट प्रेम को पुन: जागृत करता है।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी की यह कालजयी रचना स्वतंत्रता आंदोलन के समय जो शक्ति और एकता का स्रोत बनी, वही प्रेरणा आज भी हमें राष्ट्रधर्म और कर्तव्यपरायणता की राह दिखाती है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश विकसित भारत के संकल्प के साथ जिस तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है, उसमें वन्दे मातरम् की यह भावना हमारी सामूहिक चेतना को और प्रबल करती है।
यह ऐतिहासिक अवसर हमें यह संकल्प लेने का आह्वान करता है कि राष्ट्रहित, राष्ट्रनीति और राष्ट्रसेवा हमारी प्राथमिकताओं में सर्वोपरि रहें और हम नए भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहें।