क्या विद्यार्थियों को समाज के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह करना चाहिए? : राज्यपाल आनंदीबेन पटेल

सारांश
Key Takeaways
- विद्यार्थियों को समाज के प्रति जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
- राज्यपाल ने मेधावी विद्यार्थियों को सम्मानित किया।
- तकनीकी युग में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का सही उपयोग करें।
- शिक्षा का उद्देश्य संवेदनशीलता और रचनात्मकता को बढ़ावा देना है।
- विश्वविद्यालय को सर्वोत्कृष्ट ग्रेड की प्राप्ति का लक्ष्य रखना चाहिए।
लखनऊ, 14 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि विद्यार्थियों को केवल शिक्षा तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी निर्वाह करना चाहिए। राज्यपाल की अध्यक्षता में मंगलवार को ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ का दसवां दीक्षांत समारोह सम्पन्न हुआ।
इस अवसर पर राज्यपाल ने विश्वविद्यालय के मेधावी विद्यार्थियों को उपाधियां और पदक प्रदान कर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह किसी भी विश्वविद्यालय का केवल औपचारिक आयोजन नहीं होता, बल्कि यह उस संस्था की शैक्षणिक यात्रा का उज्ज्वल पड़ाव होता है। यह दिन विश्वविद्यालय के लिए गौरव का है और उन छात्र-छात्राओं के लिए जीवन का अविस्मरणीय क्षण है, जिन्हें आज अपनी उपाधि प्राप्त करने का सौभाग्य मिल रहा है। उन्होंने सभी विद्यार्थियों और विश्वविद्यालय परिवार को बधाई दी।
राज्यपाल ने कहा कि मुजफ्फर अली भारतीय सिनेमा की उस विरासत के प्रतिनिधि हैं, जिन्होंने फिल्मों को केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि संवेदना, संस्कृति और समाज का जीवंत दस्तावेज बनाया है। उनकी सृजनशीलता विद्यार्थियों को जीवन में संवेदनशीलता और रचनात्मकता के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। राज्यपाल ने कहा कि आज के दीक्षांत समारोह में भी बेटियों ने सर्वाधिक उपाधियां और स्वर्ण पदक अर्जित किया है। बेटियां आज हर क्षेत्र में अग्रणी हैं, वे परिवार की जिम्मेदारियां निभाते हुए भी राष्ट्र निर्माण में बराबरी की भूमिका निभा रही हैं।
राज्यपाल पटेल ने विद्यार्थियों से कहा कि तकनीकी युग में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग अध्ययन, शोध और कौशल विकास में करें, किसी को परेशान करने या गलत दिशा में न जाएं। उन्होंने कहा कि आपकी एक गलती न केवल आपको, बल्कि आपके परिवार को भी संकट में डाल सकती है, इसलिए अपनी प्रतिभा का प्रयोग सदैव समाजहित में करें।
उन्होंने कहा कि 'दीक्षा' का अर्थ केवल उपाधि प्राप्त करना नहीं, बल्कि वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति को सजग, संवेदनशील और कर्मशील नागरिक बनाती है। वैदिक काल की गुरुकुल परंपरा में शिक्षा पूर्ण होने पर 'समावर्तन संस्कार' होता था। उन्होंने कहा कि जीवन की वास्तविक परीक्षा विश्वविद्यालय की परीक्षा के बाद आरंभ होती है, जहां प्रश्न निर्धारित नहीं होते, और न ही उत्तर। वहीं से आरंभ होती है आपकी असली परीक्षा। उस समय केवल ज्ञान नहीं, बल्कि विवेक आपकी सबसे बड़ी शक्ति बनता है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य लोगों के भीतर के मनुष्य को जागृत करना है, जिससे विद्यार्थी पूर्ण, उत्तरदायी और संवेदनशील नागरिक बनें। विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद से “बी प्लस प्लस” ग्रेड अर्जित किया है। उन्होंने विश्वविद्यालय को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि अब लक्ष्य होना चाहिए सर्वोत्कृष्ट ग्रेड की प्राप्ति। उन्होंने विश्वविद्यालय को एनआईआरएफ रैंकिंग की दिशा में तैयारी करने का भी निर्देश दिया।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा 80 राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय एमओयू किए गए हैं, जो विद्यार्थियों के लिए सहयोग, शोध और नवाचार के नए द्वार खोलते हैं। राज्यपाल ने विश्वविद्यालय की प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया। इस प्रदर्शनी में विश्वविद्यालय द्वारा गोद लिए गए ग्रामों के विद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई आकर्षक चित्रकृतियों को प्रदर्शित किया गया।
पद्मश्री मुजफ्फर अली ने कहा कि युवाओं को समाज और पर्यावरण से जुड़कर मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। देशहित में काम करना ही उनका वास्तविक उद्देश्य होना चाहिए।” उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि वे संवेदनशीलता, सृजनशीलता और सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ जीवन में आगे बढ़ें।
उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों को बधाई देते हुए कहा कि विद्यार्थियों की सफलता में माता-पिता, अध्यापक, संस्थान तथा समाज सबका योगदान होता है, इसलिए उन्हें ऐसा बीज बनना चाहिए, जो आगे चलकर वटवृक्ष के रूप में पल्लवित हो और समाज को दिशा दे। उच्च शिक्षा राज्य मंत्री रजनी तिवारी ने विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा कि जिस प्रकार एक कुंभकार घड़े को आकार देता है, उसी प्रकार अध्यापक बच्चों के भविष्य को आकार देते हैं।