क्या स्कूलों में धार्मिक ग्रंथों को पढ़ाना चाहिए, लेकिन इसे थोपना गलत है? : सपा सांसद राजीव राय
सारांश
Key Takeaways
- धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन महत्वपूर्ण है, लेकिन थोपना अनुचित है।
- राजीव राय ने चुनाव प्रक्रिया पर चिंता जताई।
- सामाजिक समरसता के लिए सभी धर्मों को समान महत्व दिया जाना चाहिए।
नई दिल्ली, 22 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तराखंड के स्कूलों में गीता पाठ को अनिवार्य बनाने का मुद्दा अभी भी गरमाया हुआ है। समाजवादी पार्टी के सांसद राजीव राय ने सोमवार को इस पर अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने कहा कि धार्मिक ग्रंथों का स्कूलों में अध्ययन होना चाहिए, किंतु इसे थोपना नहीं चाहिए।
राजीव राय ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा, "स्कूलों में धार्मिक ग्रंथों को थोपना उचित नहीं है। स्कूल में विभिन्न धर्मों के बच्चे होते हैं। अगर हम किसी एक धर्म के ग्रंथ को उन पर थोपते हैं, तो यह सही नहीं है।"
उन्होंने महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों के परिणामों पर कहा, "चुनाव प्रक्रिया पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। मैंने संसद में, आयोग को और जिलाधिकारी को शिकायत भेजी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। ऐसे में चुनाव प्रक्रिया पर संदेह होना स्वाभाविक है।"
सपा सांसद ने हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के राज्यसभा सीट न मिलने पर गठबंधन छोड़ने के बयान पर कहा, "मांझी ने यह भी कहा है कि वे लोग कैसे वोट चोरी करते हैं और हारने वालों को जीताते हैं। उन्होंने सच बोल दिया, जिसका सरकार ने खंडन तक नहीं किया।"
उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के पश्चिम बंगाल में हिंदू एकजुटता वाले बयान पर कहा, "भाजपा के लोग हालात को बिगाड़ने में लगे हैं। जिस व्यक्ति ने बाबरी मस्जिद का नाम लिया, वह भाजपा का आदमी था।"
राजीव राय ने आगे कहा, "भाजपा की नीति 'फूट डालो और राज करो' है। उनकी साजिशों को हिंदुस्तान नाकाम कर देगा। देश को संगठित रहना चाहिए, सीमाएं सुरक्षित होनी चाहिए, और हमारे लोगों को रोजगार मिलना चाहिए, ऐसी बात हमें सभी को सोचनी चाहिए।"