क्या है 'विश्व के नाथ' की प्रतिदिन होने वाली ‘सप्त ऋषि' आरती, जो 750 वर्षों से चल रही है?

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क्या है 'विश्व के नाथ' की प्रतिदिन होने वाली ‘सप्त ऋषि' आरती, जो 750 वर्षों से चल रही है?

सारांश

क्या आप जानते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रतिदिन होने वाली 'सप्त ऋषि आरती' का इतिहास 750 वर्षों से भी पुराना है? यह अनुष्ठान भक्तों को एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।

Key Takeaways

  • सप्त ऋषि आरती का आयोजन 750 वर्षों से चल रहा है।
  • हर शाम हजारों भक्त इस अनुष्ठान का हिस्सा बनते हैं।
  • आरती में सात पंडित मिलकर भगवान शिव की आरती करते हैं।
  • पूर्णिमा पर आरती का समय एक घंटा पहले होता है।
  • काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

वाराणसी, 3 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। धर्म नगरी, गंगा नगरी या शिव नगरी कहें... देवाधिदेव महादेव के प्रिय सावन के महीने में उनकी नगरी एक अनोखे रंग में रंगी हुई है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर भक्ति और आध्यात्मिकता के रंग में डूबा हुआ है। हर शाम होने वाली ‘सप्त ऋषि आरती’ भक्तों के लिए एक अद्भुत अनुभव है, जिसका इतिहास 750 वर्षों से भी अधिक पुराना है।

यह अनुष्ठान केवल काशी की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा नहीं है, बल्कि भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक भी है।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, सप्त ऋषि आरती एक प्राचीन अनुष्ठान है जिसमें सात अलग-अलग गोत्रों के शास्त्री, पंडित या पुरोहित एक साथ मिलकर भगवान शिव की आरती करते हैं। मान्यता है कि हर शाम सात ऋषि (सप्त ऋषि) स्वयं बाबा विश्वनाथ की आरती करने आते हैं। यही कारण है कि यह पवित्र अनुष्ठान प्रतिदिन संध्या 7 बजे संपन्न होता है। पूर्णिमा तिथि पर यह आरती एक घंटा पहले, यानी शाम 6 बजे, शुरू होती है।

इस विशेष आरती में कोई भी भक्त शामिल हो सकता है। भक्तों को इस आरती में शामिल होने के लिए सामान्य दिनों में शाम 6:30 बजे तक और पूर्णिमा पर 5:30 बजे तक मंदिर में प्रवेश की अनुमति होती है।

सावन के महीने में काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। सप्त ऋषि आरती के दौरान मंदिर का गर्भगृह मंत्रोच्चार और घंटियों की ध्वनि से गूंज उठता है। इस दौरान सात पंडितों द्वारा की जाने वाली आरती में दीपों की रोशनी और भक्ति का संगम भक्तों को एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। मंदिर प्रशासन भक्तों की सुविधा के लिए विशेष व्यवस्थाएं करता है ताकि अधिक से अधिक लोग इस अनुष्ठान का हिस्सा बन सकें।

काशी विश्वनाथ मंदिर, बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक केंद्र है, बल्कि काशी की सनातन परंपराओं का भी उदाहरण है। सप्त ऋषि आरती की परंपरा इस मंदिर की प्राचीनता और भक्ति की गहराई को दर्शाती है। सावन के महीने में देश-विदेश से आए भक्त इस आरती में शामिल होकर बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

Point of View

बल्कि भारत की विविधता और आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है। इसकी महत्ता को समझकर हम अपने सांस्कृतिक धरोहर को सहेज सकते हैं।
NationPress
03/08/2025

Frequently Asked Questions

सप्त ऋषि आरती कब होती है?
सप्त ऋषि आरती प्रतिदिन संध्या 7 बजे होती है। पूर्णिमा पर यह आरती एक घंटा पहले, यानी 6 बजे, शुरू होती है।
क्या कोई भी भक्त इस आरती में शामिल हो सकता है?
हाँ, कोई भी भक्त इस आरती में शामिल हो सकता है। सामान्य दिनों में शाम 6:30 बजे और पूर्णिमा पर 5:30 बजे तक मंदिर में प्रवेश की अनुमति होती है।
सप्त ऋषि आरती का महत्व क्या है?
यह आरती भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक है और काशी की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।