क्या अदम गोंडवी एक ऐसा शायर हैं जिसने 'समय से मुठभेड़' की और 'गांव का मौसम गुलाबी' देखा?

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क्या अदम गोंडवी एक ऐसा शायर हैं जिसने 'समय से मुठभेड़' की और 'गांव का मौसम गुलाबी' देखा?

सारांश

अदम गोंडवी, एक अद्वितीय शायर और किसान, ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के असमानताओं को उजागर किया। उनकी गज़लें न केवल हुक्मरानों को चुनौती देती थीं, बल्कि ग्रामीण जीवन की सच्चाइयों को भी बयां करती थीं। क्या उनकी आवाज़ आज भी हमारे समाज में गूंजती है?

Key Takeaways

  • अदम गोंडवी का साहित्य सामाजिक असमानताओं को उजागर करता है।
  • उन्होंने कविता को प्रतिरोध की भाषा बनाया।
  • उनकी गज़लें सरकारी झूठ पर चोट करती हैं।
  • भूख और शोषण उनके काव्य का केंद्रीय विषय हैं।
  • उनकी भाषा ग्रामीण और सच्ची थी।

नई दिल्ली, १७ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। ‘काजू भुने पलेट में, व्हिस्की गिलास में, उतरा है रामराज विधायक निवास में।’ जब यह शेर पहली बार हिंदी गज़ल की महफिलों से बाहर आया, तो लोगों को नहीं पता था कि इस तीखे व्यंग्य के पीछे का चेहरा कितना विनम्र और ज़मीन से जुड़ा है। यह आवाज न किसी बुर्जुआ स्टूडियो से निकली थी, न किसी अकादमिक गलियारे से। यह गर्जना थी, उस ‘धरतीपुत्र कवि’ की, जिसने अपनी कलम को हाकिमों की तकरार के लिए उठाया और अपनी खेती को कभी नहीं छोड़ा। वे अदम गोंडवी थे।

२२ अक्टूबर १९४७ को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के अट्टा परसपुर गांव में रामनाथ सिंह का जन्म हुआ। उनका जीवन-वृत्त ही उनकी लेखनी का आधार था। वे न केवल कवि थे, बल्कि किसान भी थे। उन्हें ‘जनकवि’ या ‘धरतीपुत्र कवि’ की संज्ञा यूं ही नहीं मिली। कविता लिखते-लिखते वे खेतों में हल भी चलाते थे। इसी कारण उनके काव्य में शोषण, गरीबी और ग्रामीण जीवन की दुर्दशा का चित्रण इतना सच्चा और जीवंत है।

गोंडा की सामंती पृष्ठभूमि ने उन्हें सामाजिक विसंगतियों पर करारा प्रहार करने को प्रेरित किया। उन्होंने अपनी आंखों से देखा था कि आजादी के बाद भी ‘रामराज’ का सपना क्यों चकनाचूर हो गया। इसी मोहभंग, इसी विडंबना को उन्होंने अपनी रचनाओं (‘धरती की सतह पर’ और ‘समय से मुठभेड़’) के माध्यम से कागज पर उतारा।

सत्तर और अस्सी के दशक में जब भारतीय लोकतंत्र अपने आदर्शों से भटक रहा था, तब हिंदी कविता को एक नई प्रतिरोध की भाषा की जरूरत थी। साहित्यिक पटल पर दुष्यंत कुमार ने जो मशाल जलाई थी, अदम गोंडवी ने उसे और अधिक आक्रामकता दी। जहां दुष्यंत का प्रतिरोध दार्शनिक था, वहीं अदम ने उसमें तीखे व्यंग्य का समावेश कर उसे ‘दर्प’ (साहस और अभिमान) प्रदान किया।

यही कारण है कि उनकी शायरी सीधे हुक्मरानों से ऊंची आवाज में तकरार करती थी। १९९८ में उन्हें प्रतिष्ठित दुष्यंत कुमार पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अदम गोंडवी की गज़लें सीधे सरकारी फाइलों के झूठ पर चोट करती थीं। उन्हें पता था कि गांव की हकीकत क्या है और सरकारी कागजों में क्या लिखा जाता है।

‘तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है।’ यह एक ऐसा ‘प्रतिआख्यान’ था जो केवल शिकायत नहीं करता था, बल्कि उस पूरी शक्ति संरचना को चुनौती देता था जो डेटा के माध्यम से लोगों के अनुभवों को दरकिनार करती थी। उनकी आलोचना यहीं नहीं रुकी। उन्होंने सीधे राष्ट्र की स्वतंत्रता पर ही सवाल खड़ा कर दिया जब उन्होंने देखा कि बहुमत आबादी असंतुष्ट है।

“सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है, दिल पे रखके हाथ कहिए देश क्या आजाद है।” भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी को उन्होंने औपनिवेशिक शासन से भी बड़ा खतरा बताया, जिसकी मारक क्षमता देखिए: “जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे, कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे।” यह भाषा तिलमिला देने वाली थी, लेकिन यही उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी।

भूख अदम गोंडवी के काव्य का सबसे केंद्रीय और मार्मिक विषय था। वे मानते थे कि भूख केवल पेट भरने का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह वह शक्ति है जो इंसान को किसी भी मोड़ पर ला सकती है। ‘बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को, भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को।’

दलित चेतना और श्रम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अद्वितीय थी। उन्होंने प्रेमचंद के ‘घीसू’ का संदर्भ लाकर श्रम की महत्ता को स्थापित किया। ‘न महलों की बुलंदी से, न लफ्जों के नगीने से, तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से।’

शोषित वर्ग के जीवन के ताप को महसूस कराने के लिए उन्होंने पाठक को चुनौती दी। ‘आइए महसूस करिए जिंदगी के ताप को, मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको।’ यह केवल एक भौतिक गली का नहीं, बल्कि सामाजिक अस्मिता के उस अनदेखे यथार्थ का प्रवेश द्वार था, जिसे उनकी कविता ने केंद्र में ला दिया।

अदम गोंडवी की भाषा, जिसे आलोचकों ने ‘प्रेमचंदी हिंदुस्तानी’ कहा, ठेठ ग्रामीण मुहावरों से सजी थी, जिसने उर्दू गज़ल के शास्त्रीय सौंदर्य को कायम रखते हुए भी उसे क्लिष्ट नहीं होने दिया। उनकी व्यंग्यात्मकता में उनकी अवधी पृष्ठभूमि की ‘फक्कड़ मस्ती’ थी, जिससे वे सीधे कबीर की परंपरा के वाहक बन गए।

१८ दिसंबर २०११ को जब लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर संस्थान में पेट के रोगों के कारण इस क्रांतिकारी आवाज का अवसान हुआ, तो साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। विडंबना देखिए, जिस वर्ष देश भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के चरम पर था, उसी वर्ष लोकतंत्र के विरोधाभासों पर सबसे मारक प्रश्न उठाने वाला यह कवि हमेशा के लिए मौन हो गया।

Point of View

बल्कि यह हमारे समाज में व्याप्त असमानताओं और चुनौतियों का भी गहरा अध्ययन है। उनका काम हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम वास्तव में अपने लोकतंत्र के आदर्शों पर खरे उतर रहे हैं।
NationPress
17/12/2025

Frequently Asked Questions

अदम गोंडवी कौन थे?
अदम गोंडवी एक प्रसिद्ध शायर और किसान थे, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से ग्रामीण जीवन और सामाजिक समस्याओं को उजागर किया।
उनकी प्रमुख रचनाएं कौन सी हैं?
उनकी प्रमुख रचनाओं में 'धरती की सतह पर' और 'समय से मुठभेड़' शामिल हैं।
उन्हें किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
उन्हें 1998 में दुष्यंत कुमार पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अदम गोंडवी की कविता का मुख्य विषय क्या था?
उनकी कविता का मुख्य विषय शोषण, गरीबी और ग्रामीण जीवन की दुर्दशा था।
उनकी भाषा की विशेषता क्या थी?
उनकी भाषा को 'प्रेमचंदी हिंदुस्तानी' कहा जाता है, जिसमें ठेठ ग्रामीण मुहावरे शामिल हैं।
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