क्या यादों में यश हैं? जिनके गुजरने से 'नीला आसमान' हमेशा के लिए सो गया...

सारांश
Key Takeaways
- यश चोपड़ा का योगदान भारतीय सिनेमा में अद्वितीय है।
- उनकी फिल्में प्रेम और भावनाओं का गहरा संदेश देती हैं।
- कई हिट फिल्मों के पीछे उनकी मेहनत और दृष्टि थी।
- उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
- यश चोपड़ा का नाम आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।
नई दिल्ली, 20 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। आज हम बात करते हैं बॉलीवुड के एक ऐसे दिग्गज की जिन्होंने कई रोमांटिक फिल्मों के माध्यम से दर्शकों के दिलों में अपनी एक खास जगह बनाई। क्या आपने 2004 में रिलीज़ हुई फिल्म 'वीर-ज़ारा' का गाना 'ऐसा देश है मेरा' सुना है? इस गाने में पंजाब की धरती और उसमें बसी मोहब्बत की खुशबू का ऐसा चित्रण किया गया है कि आज भी इसे सुनकर आपको मुस्कुराने पर मजबूर होना पड़ेगा।
लेकिन, आखिर क्या कारण था कि एक फिल्म निर्माता इतनी गहराई से पंजाब को अपनी फिल्मों में दर्शाता था?
वास्तव में, पार्टिशन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से पंजाब के लुधियाना आ गया था। उनके परिवार वाले चाहते थे कि वो इंजीनियरिंग करें, लेकिन उनकी रूह पंजाब से जुड़ी थी। उन्होंने इंजीनियरिंग नहीं की और सीधे बॉम्बे (अब मुंबई) में अपने सपनों का पीछा करने निकल पड़े। अपनी मेहनत से हिंदी सिनेमा में अपनी जगह बनाने वाले इस महान व्यक्तित्व का नाम यश चोपड़ा था।
अपने सपनों को साकार करने के लिए उन्हें पंजाब छोड़ना पड़ा, लेकिन उनका दिल हमेशा वहां बसा रहा। यह उनके फिल्मों में समय-समय पर झलकता रहा।
यश चोपड़ा को बिना बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री के देखना बेमानी है। चाहे उन्होंने फिल्में निर्देशित की हों या प्रोड्यूस की हों, मोहब्बत हमेशा उनकी फिल्मों का मुख्य विषय रहा। कहा जाता है कि रोमांटिक फिल्में बनाने में उनका कोई सानी नहीं था।
यश चोपड़ा ने न केवल रोमांटिक फिल्में बनाई, बल्कि उन्होंने अन्य जॉनर की फिल्में भी उतनी ही शिद्दत से बनाई, जितनी शिद्दत से वह पंजाब को प्यार करते थे।
1959 में उन्होंने सामाजिक मुद्दे पर आधारित फिल्म 'धूल का फूल' से बॉलीवुड में कदम रखा। 1961 में 'धर्मपुत्र' का निर्देशन कर उन्होंने साबित किया कि 'शो मैन' का शब्द उनके लिए ही गढ़ा गया है। 1975 में 'दीवार' फिल्म के जरिए उन्होंने अमिताभ बच्चन की 'एंग्री यंग मैन' की छवि बनाई, जो आज भी अमिताभ के नाम के साथ जुड़ी है।
'वक्त', 'मशाल', 'त्रिशूल', 'दाग' जैसी फिल्मों से उन्होंने कमर्शियली सफल फिल्में दीं और मसाला फिल्मों का एक नया दौर शुरू किया। उन्होंने यशराज बैनर्स की स्थापना की और अपने जीवन की हर सांस को फिल्म निर्माण से जोड़े रखा।
करीब पांच दशकों तक बॉलीवुड में राज करने वाले यश चोपड़ा को कहा जाता था कि 'वो एक्टर के डायरेक्टर थे।' वे किरदारों को खुद गढ़ते थे और उन्हें परदे पर जीवंत बनाते थे।
उनका सबसे प्रिय विषय मोहब्बत था। उनकी फिल्मों में किरदार चाहे कोई भी हो, वे हमेशा यश चोपड़ा के इशारे पर चलते थे। 1981 की फिल्म 'सिलसिला' न सिर्फ यश चोपड़ा, बल्कि अमिताभ बच्चन और रेखा के लिए भी मील का पत्थर साबित हुई। अमिताभ की निजी जिंदगी के उतार-चढ़ाव को यश चोपड़ा ने पूरी ईमानदारी से पर्दे पर उतारा।
'लम्हे' (1991) और 'डर' (1993) दोनों ही अलग जॉनर की फिल्में थीं, लेकिन मोहब्बत की कहानी के कारण ये लैंडमार्क मूवी बन गईं। यश चोपड़ा को कई पुरस्कार मिले, लेकिन उनका दिल हमेशा पंजाब की मिट्टी में धड़कता रहा।
यद्यपि उन्हें पंजाब की धरती से दूर रहने का दुःख था, लेकिन उन्हें खुशी थी कि फिल्मों में बर्फ से ढके पहाड़ों और चिनार के लंबे पेड़ों के बीच पंजाब का दिल हमेशा धड़कता रहा। आज भी जब यश चोपड़ा का नाम लिया जाता है, तो एक गाना याद आ जाता है, 'नीला आसमान सो गया'। 21 अक्टूबर 2012 को यश चोपड़ा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया और उनके जाने के बाद सचमुच ऐसा लगा कि 'नीला आसमान सो गया' है।
यशराज फिल्म्स ने यश चोपड़ा के लिए बहुत कुछ लिखा है। इसका एक हिस्सा है, ''एक शानदार करियर का एक उपयुक्त अंत, दशकों के बेहतरीन काम को समेटने वाली एक फिल्म, शाहरुख खान, कैटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा अभिनीत 'जब तक है जान' यश चोपड़ा की बतौर निर्देशक आखिरी फिल्म थी।''
21 अक्टूबर 2012 को 80 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया और वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी। यह फिल्म 13 नवंबर 2012 को रिलीज हुई और दुनियाभर में इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली और यह साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में से एक बन गई।