क्या 'जीन थेरेपी' बहरापन ठीक करने में सफल हो सकती है?

सारांश
Key Takeaways
- जीन थेरेपी ने बहरापन के इलाज में नई उम्मीद जगाई है।
- स्वीडन और चीन के शोधकर्ताओं ने इस थेरेपी का सफल परीक्षण किया।
- 10 मरीजों में सुनने की क्षमता में महत्वपूर्ण सुधार हुआ।
- विशेष रूप से बच्चों में यह थेरेपी प्रभावी रही।
- यह उपचार सुरक्षित और सहन करने योग्य पाया गया है।
नई दिल्ली, 5 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। वैज्ञानिकों ने एक नई जीन थेरेपी का विकास किया है, जो जन्मजात बहरापन या गंभीर सुनने की समस्या से ग्रसित बच्चों और वयस्कों के लिए एक आशा की किरण बन सकती है।
स्वीडन और चीन के वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस थेरेपी का सफल परीक्षण किया, जिसके परिणामस्वरूप 10 मरीजों की सुनने की क्षमता में सकारात्मक सुधार देखा गया। यह अध्ययन 'नेचर मेडिसिन' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
इस शोध में 1 से 24 साल की उम्र के 10 मरीजों को शामिल किया गया, जो चीन के पांच अस्पतालों में भर्ती थे।
ये मरीज ओटीओएफ जीन में म्यूटेशन के कारण बहरापन या गंभीर सुनने की समस्या से पीड़ित थे। यह म्यूटेशन ओटोफेर्लिन प्रोटीन की कमी का कारण बनता है, जो कान से दिमाग तक ध्वनि संकेतों के संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जीन थेरेपी में कान के अंदरूनी हिस्से में एक विशेष प्रकार के सिंथेटिक वायरस (एएवी) का उपयोग करके ओटोएफ जीन का एक कार्यशील संस्करण पहुँचाया गया। यह एक ही इंजेक्शन के माध्यम से कोक्लिया (कान का एक हिस्सा) के आधार पर मौजूद एक झिल्ली (जिसे राउंड विंडो कहते हैं) से दिया गया।
इस थेरेपी का प्रभाव तेजी से देखने को मिला। केवल एक महीने में अधिकांश मरीजों की सुनने की क्षमता में सुधार हुआ। छह महीने बाद हुए फॉलो-अप में सभी मरीजों में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई। औसतन, मरीज 106 डेसिबल की ध्वनि को सुनने में सक्षम थे, जो पहले की तुलना में 52 डेसिबल तक बेहतर हो गया।
विशेष रूप से 5 से 8 साल के बच्चों में यह थेरेपी सबसे ज्यादा प्रभावी रही। सात साल की एक बच्ची ने चार महीने में लगभग पूरी सुनने की क्षमता प्राप्त कर ली और वह अपनी मां के साथ रोजमर्रा की बातचीत करने लगी। वयस्क मरीजों में भी यह थेरेपी कारगर साबित हुई।
स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ माओली दुआन ने कहा, "यह बहरेपन के जेनेटिक उपचार में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह मरीजों की जिंदगी को बदल सकता है। हम अब इन मरीजों की निगरानी करेंगे ताकि यह पता चल सके कि यह प्रभाव कितने समय तक रहता है।"
इस थेरेपी को सुरक्षित और अच्छी तरह सहन करने योग्य पाया गया। यह सफलता बहरापन के इलाज में नई उम्मीद जगाती है।