क्या सरकार की नीति हाथी पांव की बीमारी को खत्म करने में सफल हो रही है?: डॉ. एनके गांगुली

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क्या सरकार की नीति हाथी पांव की बीमारी को खत्म करने में सफल हो रही है?: डॉ. एनके गांगुली

सारांश

डॉ. एनके गांगुली ने बताया कि कैसे भारत सरकार लिम्फेटिक फाइलेरियासिस के उन्मूलन के लिए एक ठोस योजना बना रही है। 2027 तक इस बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जानिए इस योजना की विशेषताएँ और क्या ये लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा?

Key Takeaways

  • लिम्फेटिक फाइलेरियासिस के उन्मूलन के लिए सरकार का ठोस प्रयास।
  • 2027 तक देश को इस बीमारी से मुक्त करने का लक्ष्य।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय की पांच-आयामी रणनीति के सकारात्मक परिणाम।
  • देशभर में 143 जिलों ने एमडीए कार्यक्रम के तहत सफलता पाई है।
  • लिम्फेडेमा के इलाज में लागत और सामाजिक असर।

नई दिल्ली, 13 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के पूर्व महानिदेशक डॉ. एनके गांगुली ने बताया कि कैसे लिम्फेटिक फाइलेरियासिस अर्थात् हाथी पांव की बीमारी के उन्मूलन में सरकार सही दिशा में काम कर रही है।

सरकार ने वर्ष 2027 तक देश को लिम्फेटिक फाइलेरियासिस से मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) द्वारा संचालित पांच-आयामी रणनीति के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। इस संबंध में अपनी राय राष्ट्र प्रेस के माध्यम से डॉ. एनके गांगुली ने साझा की।

उन्होंने कहा, "भारत में लगभग 7.5 लाख लोग लिम्फेडेमा और हाइड्रोसील जैसी गंभीर बीमारियों से परेशान हैं। ये बीमारियां न केवल शारीरिक दर्द का कारण बनती हैं, बल्कि मरीजों को गहरे सामाजिक प्रताड़ना का भी सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी काम करने और सामुदायिक जीवन में भाग लेने की क्षमता प्रभावित होती है।"

भारत में लिम्फेडेमा का उपचार अत्यधिक महंगा है, और विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि इससे उत्पादकता में हर साल लगभग 8,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।

डॉक्टर एनके गांगुली ने कहा, "इसलिए लिम्फेडेमा का उन्मूलन एक स्पष्ट सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता है, न केवल बीमारी के बोझ को कम करने के लिए, बल्कि आजीविका और आर्थिक उत्पादकता की रक्षा के लिए भी।"

उन्होंने बताया, "यह उत्साहजनक है कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) के नेतृत्व में भारत की पांच-आयामी रणनीति के परिणाम स्पष्ट हो रहे हैं। जुलाई 2025 तक, 143 से अधिक जिलों ने माइक्रोफाइलेरिया संचरण दर को 1 प्रतिशत से नीचे लाकर मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) को रोकने की सीमा को पूरा कर लिया है।"

इस वर्ष की शुरुआत में प्रारंभ की गई इस पांच-आयामी रणनीति में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (एनडीडी) के अंतर्गत वर्ष में 2 बार एमडीए अभियान, शीघ्र निदान और उपचार के साथ रुग्णता प्रबंधन और विकलांगता निवारण, निगरानी और प्रबंधन के साथ वेक्टर नियंत्रण, विभिन्न मंत्रालयों के साथ उच्च-स्तरीय बातचीत और एलएफ के लिए मौजूदा डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करके और वैकल्पिक निदान की खोज करना शामिल है।

गांगुली ने कहा, "एमडीए कवरेज दरें, जो अब कई क्षेत्रों में 85 प्रतिशत से अधिक हो गई हैं, धीरे-धीरे महत्वाकांक्षी 95 प्रतिशत लक्ष्य के करीब पहुंच रही हैं। कभी अवास्तविक मानी जाने वाली ये दरें अब अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं, नीति निर्माताओं और सामुदायिक हितधारकों के निरंतर प्रयासों के कारण पहुंच के भीतर हैं।"

उन्होंने राज्य द्वारा संचालित सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) अभियानों का श्रेय दिया। साथ ही, उन्होंने कहा कि पूरे देश में मौजूद आशा और एएनएम कर्मचारियों की मेहनत के कारण ही हम यहां तक पहुंच सके हैं। इन लोगों ने दिन-रात मेहनत करके लोगों को जागरूक किया है। लिम्फेटिक फाइलेरियासिस को दूर करने में इनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है।

Point of View

यह स्पष्ट है कि लिम्फेटिक फाइलेरियासिस जैसे गंभीर स्वास्थ्य मुद्दों से निपटने के लिए सरकार की कोशिशें महत्वपूर्ण हैं। हालांकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं, परंतु इस दिशा में उठाए गए कदम निश्चित रूप से सराहनीय हैं।
NationPress
18/08/2025

Frequently Asked Questions

हाथी पांव की बीमारी क्या है?
हाथी पांव, जिसे लिम्फेटिक फाइलेरियासिस भी कहा जाता है, एक परजीवी संक्रमण है जो लिम्फेटिक प्रणाली को प्रभावित करता है।
इस बीमारी के लक्षण क्या हैं?
इस बीमारी के लक्षणों में सूजन, दर्द और विकलांगता शामिल हो सकते हैं।
भारत में इस बीमारी का इलाज कैसे किया जाता है?
सरकार ने मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) के माध्यम से इस बीमारी के इलाज की योजना बनाई है।
क्या इस बीमारी से बचाव संभव है?
जी हाँ, नियमित चिकित्सा और दवाओं के सेवन से इस बीमारी से बचाव संभव है।
इस बीमारी के साथ जीने वाले लोगों की संख्या क्या है?
भारत में लगभग 7.5 लाख लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं।