क्या 'माइक्रोप्लास्टिक' हमारे दिमाग और स्वास्थ्य का नक्शा बदल रहे हैं?

सारांश
Key Takeaways
- माइक्रोप्लास्टिक हमारे दिमाग और स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
- प्लास्टिक का उपयोग कम करने के लिए छोटे बदलाव करें।
- प्राकृतिक सामग्री का चुनाव करें।
- व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों का चयन सावधानी से करें।
- पारंपरिक तरीके से चाय बनाना सुरक्षित है।
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। प्लास्टिक हमारे पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है और इसका उपयोग जितना कम किया जाए, उतना ही बेहतर है। यह हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि आज के समय में यह प्लास्टिक विभिन्न तरीकों से हमारे शरीर के विभिन्न अंगों में समा चुका है। इससे यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो प्रकृति पर इतना विपरीत प्रभाव डालता है, वह हमारी सेहत पर क्या असर डालता होगा।
इस पर यकीन करना मुश्किल है, लेकिन यह सौ फीसदी सच है! जो प्लास्टिक हम पैकेटों और बोतलों में देखते हैं, वही अब हमारे खून, फेफड़ों, यहां तक कि हमारे दिमाग में तक पहुंच चुका है। वैज्ञानिक बताते हैं कि हमारे मस्तिष्क में लगभग 5 ग्राम तक माइक्रोप्लास्टिक जमा हो सकता है, जो कि प्लास्टिक की एक छोटी चम्मच के बराबर है। इसका मतलब यह है कि यह केवल हमारे चारों ओर नहीं, बल्कि हमारे भीतर भी मौजूद है।
ऑस्ट्रिया की 'यूनिवर्सिटी ऑफ ग्राज' के वैज्ञानिक डॉ. क्रिश्चियन पैचर-डॉयचे ने पांच स्वस्थ व्यक्तियों की आंतों (गट माइक्रोबायोम) से लिए गए बैक्टीरिया को पांच अलग-अलग माइक्रोप्लास्टिक्स के संपर्क में रखा। परिणाम अत्यंत चौंकाने वाला था।
जिन बैक्टीरिया की संख्या और संतुलन हमारी पाचन शक्ति और मानसिक स्वास्थ्य को नियंत्रित करते हैं, वे तेजी से बदलने लगे।
कुछ बदलाव वैसे ही दिखते हैं जैसे डिप्रेशन और कोलन कैंसर से जुड़े पैटर्न में देखे जाते हैं। सवाल यह है कि ये कण क्या करते हैं? माइक्रोप्लास्टिक्स इतने सूक्ष्म होते हैं कि न केवल खून में घुल जाते हैं, बल्कि शरीर की सबसे संवेदनशील झिल्लियों जैसे प्लेसेंटा और ब्रेन बैरियर को भी पार कर जाते हैं। अब सवाल यह है कि अगर ये भीतर पहुंच चुके हैं, तो क्या ये हमारे विचारों, भावनाओं, और यहां तक कि हमारे मूड को भी प्रभावित कर रहे हैं?
प्लास्टिक केवल एक ठोस पदार्थ नहीं है, बल्कि यह जहरीले रसायनों का ‘कॉकटेल’ है। ये कण हमारे ‘अच्छे’ रसायनों जैसे सेरोटोनिन के उत्पादन में कमी ला सकते हैं और अधिक ‘खतरनाक’ या सूजन बढ़ाने वाले रसायनों का उत्पादन कर सकते हैं।
वैज्ञानिकों का स्पष्ट इशारा है कि माइक्रोप्लास्टिक हमारी प्रतिरोधक क्षमता, आंतों और मानसिक स्वास्थ्य तीनों को प्रभावित कर सकता है।
जब हम चारों ओर से प्लास्टिक में घिरे हैं, तो इससे कैसे निपटें? इसके लिए हमें अपने जीवन में कुछ छोटे-छोटे बदलाव करने होंगे। जैसे, प्लास्टिक के बर्तनों में खाना गर्म करने से बचें, लकड़ी के चॉपिंग बोर्ड का उपयोग करें, स्टेनलेस स्टील या सेरामिक के कप का इस्तेमाल करें और चाय की पत्तियों को पारंपरिक तरीके से उबालें।
जब रसोई से शयनकक्ष में जाएं, तो अपनी आदतों में भी बदलाव लाएं। जैसे, तकिया, मैट्रस और बेडशीट प्लास्टिक के कणों से बने न हों, बल्कि प्राकृतिक कपड़े का इस्तेमाल करें।
व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों और सौंदर्य प्रसाधनों के लेबल पर भी ध्यान दें। कुछ सौंदर्य उत्पादों में पॉलीइथाइलीन, पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीयूरेथेन या एक्रिलेट्स जैसे नैनो या माइक्रोप्लास्टिक हो सकते हैं। मासिक धर्म संबंधी उत्पादों में छिपे प्लास्टिक पर भी ध्यान दें, जो 100 प्रतिशत कॉटन से बने हों या सिलिकॉन कप चुनें।